भगवती मां तारा के विषय मे प्रयास_मात्र

{{{ॐ}}} #तारा_साधना

अक्षोभ्य पुरुष और उसकी महाशक्ति भगवती मॉ तारा है रात्रि के १२ बजे से सुर्यों उदय महाकाली की सत्ता रहती है ।इसके बाद महाशक्ति महाविधा तारा का साम्राज्य है।
जब तक अन्नाहुति होती रहती है, तारा शान्त रहती है, अन्नाभाव मे यह शक्ति उग्रतारा बनकर संसार का नाश कर डालती है।
महाकाली महाप्रलय की अधिष्ठात्री देवी है,तारा सूर्य प्रलय की। प्रलय करना दोनो का समान धर्म है।
उग्र तारा की चारों भुजाओं मे सर्प लिपट रहे है प्रलय काल मे जहरीली गैसों से ही विश्व का संहार करती है, शव रूप विश्व केन्द्र मे प्रतिष्ठित है ।
यह महाशक्ति इसी रूप मे विश्व का संहार करती है ।ऋषि वशिष्ठ से शापित होने के कारण ताराबीज (त्रीं) से शापो द्वार से सकार का योग कर इनका मंत्र, ॐह्रीं स्त्री हुं फट् इस विधा से साधना करने या निर्देश दिया।
तब से यह विधा वधू को समान यशस्विनी हो गयी तथा तारा का यह बीज(स्त्रीं)वधू बीज कहलाने लगा।
तंत्र शास्त्रों के अनुसार सप्रणव माया बीज वधू बीज कुर्चबीज एवं अस्त्र वाला यह(ॐह्रीं स्त्री हूं फट्) पञ्चाक्षर दिव्य एवं अति पवित्र है।
यह विश्व साधकों को बुद्धि, ज्ञान, शक्ति, जय, एवं श्री देने वाली तथा भय, मोह, एवं अप मृत्यु का निवारण करने वाली मानी गयी है ।
यह देवी विपदाओं मे पड़ा मनुष्य अपने कर्तव्य कर्म का पालन नही कर सकता उस समय भगवती तारा रूप से मनुष्यों की रक्षा करती है
मां तारा की उपासना पुजा तीन प्रकार से होती है सात्विक , राजस, एवं तामस। इनमे कामना रहित पूजा सर्वश्रेष्ठ है।
यदि मारण, मोहन, उच्चाटन आदि भयंकर घोर उपचार कर्मों से दूसरों को हानि पहुँचाई होगी तो गति भी खराब ही होगी।
तारा तंत्र ये अनुसार असमर्थता होने पर केवल अक्षोभ्य ऋषि का पूजन कर लेना चाहिए ।तंत्र शास्त्र मे देवी का वचन है कि मेरी उपासना करने वाले व्यक्ति को मेरे मस्तष्क पर स्थित अक्षोभ्य ऋषि का पूजन अवश्य करना चाहिए।
अक्षोभ्य ऋषि को पूजन का मंत्र इस प्रकार है—-
मंत्र:- अक्षोभ्य वज्र पुष्पंप्रतीच्छ स्वाहा।। एक माला।
इनकी साधना का उत्तम स्थान मे पांच कोस की सीमा के भीतर एक के अलावा अन्य शिव लिंग न हो उस स्थान या एक लिंग कहते है ।
उस जगह उपासना करने से सहज सिद्धि मिल जाती है ।
इसके अलावा श्मशान, उज्जट, चतुष्पथ, रणभूमि, योनि मण्डल, मुंडासन, इनके अलावा एकान्त स्थान पूजा केलिए सर्वश्रेष्ठ है।
तारा मंत्र ये जप मे कुल्लिका का ज्ञान तथा न्यास होना भी आवश्यक है
कुल्लिका का सिर मे न्यास किए बिना तारा मंत्र का जप करने से मृत्यु या उन्माद हो जाता है ।

विनियोग:-ॐअस्य महोग्रतारामंत्रस्य अक्षोभ्य ऋषिः वृहती छन्दः श्री महोग्रतारा देवता,हूँ बीजं फट् शक्ति स्त्री कीलकं श्री तारा देवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। ऋष्यादि न्यास

ॐअक्षोभ्य ऋषये नमः शिरसि।वृहती छन्द से नमः मुखे।
श्रीमहोग्रतारादेवताये नमः ह्रदि।ह्रीं (हूँ) बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ हूँ (फट्)शक्तये नमः पादयोः। स्त्री कीलकाय नमः नाभौ। विनियोगाय नमः सर्वागें। करन्यास

ॐ ह्रां अगुष्ठाभ्यां नमः।ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।ॐह्रूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐह्रैं अनामिका्भ्यां नमः। ॐह्रौं कनिष्ठका श्याम नमः। ॐह्रंः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः ह्रदयादि न्यास

ॐह्रां ह्रदयाय नमः। ॐह्रीं शिरसि स्वाहा। ॐह्रूं शिखाये वषट् ।ॐ ह्रूैं कवचाये हूँ।ॐह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।ॐ ह्रँः अस्त्राय फट्। ध्यान

प्रत्याली ढपदार्पिता घ्रिशवह्रद-घोराट्टहासा परा।
खड्गोन्दीवरकर्तृ खर्पर भुजा हूँ कार बीजोभ्दवा।।
खर्वानील विशाल पिंगल जटजूटैक नागैर्युता।
जाअयं न्यस्य कपाल के त्रिजगतां हन्त्युग्रतारास्वयम्।।

अंजलि मे दुर्वा अक्षत एवं रक्त चंदन मिश्रित पुष्प लेकर अपनी आत्मा से अभिन्न समझते हुए देवी का ध्यान करें ।

मंत्र:–ॐह्रीं स्त्री हूँ फट्

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