गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादव शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। इन्हे हिन्दु और मुस्लिम दोनो पूजते है|
वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिस्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान, जो राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा मेंस्थित है। जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिएदूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम सेपुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इसतरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुषगोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एकधर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी काजन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह)की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआथा। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था।
लोकमान्यताव लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाताहै। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों सेपुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थानके छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।
जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर केपास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरूके अंतर्गत आता है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल हैऔर सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमानहै। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेवकी घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं औरजन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं। आज भी सर्पदंशसे मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप मेंपत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्पदंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्तिसर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष कीनवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। उत्तर प्रदेश में इन्हेंजहर पीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं
हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थितगोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जोसाम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिमपुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्लपूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर केजयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धाराबहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजीकी समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर मेंमत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं।
प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव-गाँव में गोगा वीर गोगाजी का आदर्श व्यक्तित्व भक्तजनों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है।
गोरखटीलास्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं।विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवनआदर्शों का प्रतीक माना है। लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवामें भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगतपंचमी (सोमवार) कोश्रद्धालुओं की संख्या में और बढ़ोतरी हुई। मेले में राजस्थान के अलावापंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालुपहुंच रहे हैं।
जातरुददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकरगुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनीभाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों मेंडैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े केजातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकलेमारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। गोरखनाथ जीसे सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूषगोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवीनिःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहींमिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवीउनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दियाऔर एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवतीहो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजीपड़ा|