भीमा शंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर

भारत में महाराष्ट्र पुणे के पास खेड के उत्तर-पश्चिम से 50 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यह मंदिर पुणे के शिवाजी नगर से 127 किलोमीटर की दुरी पर सह्याद्री पहाडियों की घाटी में बना हुआ है।

सह्याद्री घाटी में बसा “भीमाशंकर मंदिर”
भीमाशंकर, भीमा नदी का भी स्त्रोत है, जो दक्षिण-पूर्व में बहती है और रायचूर के पास कृष्णा नदी में मिल जाती है।

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में कहा गया है कि पुराने समय में कुंभकर्ण का पुत्र भीम नाम का एक राक्षस था। उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था।

अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी। बाद में अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया।

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वषरें तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया।

उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी-देवता भी भयभीत रहने लगे। धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी। युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारंभ कर दिया। उसने सभी तरह के पूजा पाठ बंद करवा दिए। अत्यंत परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए।

भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया कि वे इस का उपाय निकालेंगे। भगवान शिव ने राक्षस तानाशाह भीम से युद्ध करने की ठानी। लड़ाई में भगवान शिव ने दुष्ट राक्षस को राख कर दिया और इस तरह अत्याचार की कहानी का अंत हुआ।

भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो़। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी यहां विराजित हैं।

जब कामरुपेश्वर ने उनकी पूजा करने से इंकार कर दिया तो तानाशाह भीमा ने शिवलिंग पर वार करने के लिए अपनी तलवार उठाई जिसकी कामरुपेश्वर पूजा और अभिषेक कर रहा था। जैसे ही उसने शिवलिंग पर वार करने का प्रयास किया वैसे ही स्वयं भगवान शिव उसमे से प्रकट हो गए। इसके पश्चात भयानक युद्ध हुआ।

लेकिन फिर ऋषि नारद वहाँ आये और उन्होंने भगवान शिव से अनुरोध किया की, ‘हे भगवन अब इस युद्ध का अंत कर दीजिए।’ इसके बाद शिवजी ने उस दुष्ट राक्षस को राख में परिवर्तित कर दिया और उस दुष्ट के अत्याचार की गाथा को समाप्त कर दिया।

उस स्थान पर उपस्थित सभी संतो और देवताओ ने भगवान शिव से यह प्रार्थना की के वह इसी स्थान को अपना निवास स्थान बना ले। और इस प्रकार भगवान शिव भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। ऐसा माना जाता है की लड़ाई के बाद भगवान शिव के शरीर से निकले पसीने से भीमरथी नदी का निर्माण हुआ था।

शहरो की भीड़-भाड़ वाली जिंदगी से दूर, सफ़ेद बादलो के बीच बना हुआ भीमाशंकर किसी स्वर्ग से कम नही है।

यहाँ की पहाडियों के आस-पास वाली ऊँची पर्वत श्रुंखलाओ में जंगली वनस्पतियाँ और जानवरों की दुर्लभ प्रजातियाँ भी पाई जाती है। भीमाशंकर यात्रा करने के लिए एक सर्वोत्तम स्थान है, यहाँ की ठंडी हवाएं और पक्षियों की चहचहाट आपको बहुत पसंद आएँगी।

सनातनसर्वश्रेष्ठहै🚩

जय जय भीमशंकर महादेव ।।

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