हमारे पौराणिक ग्रंथों में कहा गया कि हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर उपस्थित थे, जब #शेषनागकाफण हिलता है, तब भूकंप या प्रलय आता है।
कथानक इस प्रकार से है, कि ब्रह्मा जी के निर्देश के अनुसार शेषनाग का शरीर विद्युत ऊर्जा और चुंबकीय शक्ति में परिवर्तित हो गया और उसने धरती को चारों ओर से घेर कर अचला अर्थात स्थिर कर दिया यही कारण है कि आज संपूर्ण पृथ्वी हिलती नहीं है, अपितु धरती के आंतरिक ऊष्मा के कारण उसका कोई कोई भाग हिलने लगता है जिसे भूकंप कहते हैं।
जब धरती के विनाश का समय आता है, तो उन्हें भगवान शेषनाग की विद्युत ऊर्जा इस धरती के नीचे से और प्रलय कालीन संवर्तक सूर्य ऊपर से पृथ्वी को इतना तप्त (गर्म) करते हैं कि वह पुन: आग का गोला बन जाती है इस तथ्य को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया कि अंतिम समय में सूर्य कितना ताप उत्सर्जित करेगा कि धरती पुनः आग का गोला बन जायेगी।
धरती के नीचे से शेषनाग की ऊर्जा के कारण हुई यह वसुंधरा है अर्थात सभी प्रकार की अन्य संपत्तियों को धारण करती है धरती के नीचे से शेषनाग की ऊर्जा और ऊपर से सूर्य की गर्मी से ही वनस्पति जगत फलता फूलता रहता है।
शेषनाग और सूर्य की ऊर्जा तथा वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत का आधार है आज के सभी आरती आश्चर्य और सुविधाजनक वैज्ञानिक आविष्कार ऊर्जा पर ही आधारित है।
▪️ #शेषनागपरपृथ्वीकावैज्ञानिक_आधार – दक्षिणी ध्रुव से सटा हुआ अति प्रबल धारिता शक्ति युक्त एक सर्प के आकार का ऊर्जा क्षेत्र है।
पृथ्वी उसी क्षेत्र पर बिना हटे हुए लट्टू की भांति अपने स्थान (धुरी) पर घूमती रहती है और वह सर्पाकार शक्ति क्षेत्र पृथ्वी को लिये हुए सूर्य के चारों ओर घूमता रहता है।
इसी शक्ति क्षेत्र को पुराणों में नाग कहा गया है यह ऊर्जा क्षेत्र अर्थात नागराज प्रत्येक ग्रह को दक्षिणी ध्रुव की ओर से धारण किए हुए हैं और प्रत्येक ग्रह को दो गतियों (ध्रुवीय गति और सूर्य के चारो ओर भी परिक्रमा) में घुमाया करता है।