भगवान दत्तात्रेय की जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन 29 दिसंबर 2020 को मनाई जाएगी। दत्तात्रेय को त्रिदेवों अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त रूप माना जाता है। एक मान्यता यह भी है भगवान दत्तात्रेय विष्णु के अवतार है। दत्त जयंती पूरे देश में श्रद्धा भक्ति के साथ मनाई जाती है। दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में इसका अधिक महत्व है। इसीलिए महाराष्ट्र में प्रसिद्ध दत्त संप्रदाय में बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। भगवान दत्तात्रेय में त्रिदेवों की शक्ति समाहित है इसलिए इनकी पूजा समस्त सुख, वैभव, ऐश्वर्य प्रदान करने वाली कही गई है।

भगवान दत्तात्रेय के तीन सिर और छह भुजाएं होती हैं। इनका वाहन श्वान को बताया गया है। गुरुवार इनका दिन है। भोग में इन्हें पीले फल, पीली मिठाई, चने की दाल आदि अर्पित की जाती है। जिन युवक-युवतियों के विवाह में बाधा आती है वे गुरुवार के दिन भगवान दत्तात्रेय का पूजन कर उन्हें चने की दाल, हल्दी, स्वर्ण आदि अर्पित करते हैं। दत्त जयंती के दिन उपवास रखकर भगवान का पूजन करने से समस्त सुख प्राप्त होते हैं।

कौन हैं दत्तात्रेय
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और अनुसुइया के पुत्र हैं। अनुसुइया ने अनेक वर्षो तक तप करके एक ऐसे पुत्र की कामना की थी जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवताओं का अंश और शक्ति समाहित हो। लेकिन त्रिदेवों स्त्री शक्ति देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती में अनुसुइया के तप से जलन की भावना पैदा हो गई और उन्होंने त्रिदेवों से अनुसुइया के तप की परीक्षा लेने का आग्रह किया। तीनों देवता साधु के वेश में अनुसुइया की परीक्षा लेने पहुंचे। उन्होंने अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही। अनुसुइया कुछ क्षण के लिए परेशान हुई लेकिन अगले ही क्षण उन्होंने मंत्र पढ़ते हुए तीनों साधुओं पर जल का छिड़काव किया, जिससे वे तीनों बाल रूप में बन गए। इसके बाद अनुसुइया ने उन्हें माता बनकर स्तनपान करवाया। जब अत्रि मुनी आश्रम पहुंचे तो अनुसुइया ने उन्हें सारा किस्सा सुनाया लेकिन ऋषि तो अपनी दिव्य दृष्टि से सब देख रहे थे। ऋषि ने तीनों बच्चों को गले से लगाया और अपनी शक्ति से उन्हें एक कर दिया। उस बच्चे के तीन सिर और छह भुजाएं थी।

अनुसुइया ने तीनों देवियों की विनती स्वीकार की

जब तीनों देव लंबे समय तक न लौटे तो उनकी पत्नियां चिंतित हो गई और अनुसुइया के पास पहुंची। देवियों ने अपने पतियों को मुक्त करने की प्रार्थना की। अनुसुइया ने तीनों देवियों की विनती स्वीकार करते हुए तीनों देवताओं को उनके असली स्वरूप में लौटा दिया। तीनों देवताओं ने अपने दत्तात्रेय स्वरूप को अत्रि और अनुसुइया के पास ही रहने दिया और आशीर्वाद दिया कि यह बालक हम तीनों देवताओं की शक्ति वाला रहे

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