महाराष्ट्र में एक छोटा सा गांव है शिंगणापुर, जहां आज भी किसी भी घर में दरवाजे नहीं है। घरों में दरवाजे न होने के बावजूद यहां चोरी की घटनाएं नहीं होती हैं, क्योंकि यहां ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति यहां चोरी करेगा उसे स्वयं शनि देव जी सजा देंगे। इस स्थान पर शनि की विशेष कृपा है। शास्त्रों के अनुसार शिंगणापुर में ही शनिदेव का जन्म हुआ था। शिंगणापुर में शनि देव की एक विशाल प्रतिमा है।
इस मूर्ति का रंग काला है। इसकी लंबाई लगभग 5 फीट 9 इंच है और चौड़ाई करीब 1 फीट 6 इंच। शनि के जन्म के संबंध में शास्त्रों में बताया गया है कि शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं। सूर्य की पत्नी छाया ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। तपस्या की कठोरता और धूप-गर्मी के कारण छाया के गर्भ में पल रहे शिशु का रंग काला पड़ गया। तपस्या के प्रभाव से ही छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म शिंगणापुर में हुआ।
इस दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या थी। शनिदेव के जन्म के बाद जब सूर्य अपनी छाया और पुत्र से मिलने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पुत्र का रंग काला है। काले शिशु को देखकर सूर्य ने पत्नी छाया से संदेह प्रकट किया कि इतना काला शिशु उनका नहीं हो सकता है। सूर्य की कठोरता देखकर शनि के मन में माता के लिए श्रद्धा बढ़ गई और पिता सूर्य के लिए क्रोध बढऩे लगा, तभी से शनि सूर्य के प्रति शत्रुभाव रखते हैं। शनि ने सूर्य से भी अधिक तेजस्वी और पराक्रमी बनने की इच्छा से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की।
शनि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। तब शनि ने शिवजी से कहा कि उनके पिता सूर्य से उन्हें तथा उनकी माता को हमेशा अपमानित होना पड़ा है। अत: आप मुझे सूर्यदेव से भी अधिक शक्तियां और ऊंचा पद प्रदान करें। शिवजी ने शनि की विनती मानकर उन्हें न्यायाधीश का पद प्रदान किया और सूर्य से भी अधिक तेजस्वी और शक्तिशाली होने का वरदान दिया। तभी से शनि का स्थान सभी नौ ग्रहों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गया।