भगवान श्री विष्णु के २४ अवतारों में से एक भगवान #वेदव्यास भी है –
“व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम: “
(अर्थात – व्यास विष्णु के रूप है तथा विष्णु ही व्यास है ऐसे वसिष्ठ-मुनि के वंशज भगवान व्यास को मैं नमन करता हूँ।)
पौराणिक – महाकाव्य युग की महान विभूति, महाभारत, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य-दर्शन के प्रणेता भगवान वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे, तथा इनकी माता मत्स्यकन्या सत्यवती थी। यमुना तट पर उनका जन्म हुआ था, जन्म लेते ही वे तपस्या करने “द्वैपायन” द्वीप में चले गए थे। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने और उनके शरीर का रंग श्याम वर्ण का होने के कारण उन्हें “कृष्ण द्वैपायन” कहा गया। कालांतर में वेदों का विभाजन करने से वे “वेदव्यास” के नाम से विख्यात हुए।
त्रिकालज्ञ भगवान वेदव्यास जानते थे कि कलयुग में धर्म का ह्रास होगा और धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जाएंगे तब एक विशाल वेद का सांगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ से बाहर हो जायेगा। मनुष्यो के कल्याण के लिए इन्होंने वेद का व्यास अर्थात विभाग कर दिया और वेदव्यास कहलाये। वेदों का ४ भागों में विभाजन कर उन्होंने अपने शिष्य सुमन्तु, जैमिनी, पैल और वैशम्पायन तथा पुत्र शुकदेवजी को उनका अध्ययन कराया था। व्यास जी के शिष्योंने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं, जिन्हें वेदांत-दर्शन से जाना जाता है।
इन्होंने ही १८ पुराणों की रचना की है, तथा उसे अपने शिष्य “रोम हर्षन” को पढ़ाया। महर्षि व्यास ने महाभारत की भी रचना की जिसे भगवान श्री गणेश जी ने लिखा था। महाभारत के संबंध में स्वयं व्यासजी की ही उक्ति है की- “इस ग्रंथ में जो कुछ है, वह अन्यत्र भी है, पंरतु जो इसमें नहीं है, वह अन्यत्र कहीं भी नहीं है।” भगवान व्यास का उद्देश्य महाभारत लिख कर युद्ध का वर्णन करना नहीं, बल्कि इस भौतिक जीवन की नि:सारता को दिखाना है, क्योंकि महाभारत एक ही साथ अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा कामशास्त्र है।
महर्षि वेदव्यास जी की पत्नी आरुणि से इनके पुत्र महान बालयोगी “शुकदेवजी” हुए, जिन्होंने नैमिषारण्य में महाराज परीक्षित एवं अन्य ८८ हज़ार ऋषियों को “श्रीमद्भागवत” कथा सुनाई थी।
महर्षि वेदव्यास का मन्दिर व्यासपुरी में विद्यमान है जो काशी से पाँच मील की दूरी पर स्थित है। महाराज काशी नरेश के रामनगर दुर्ग में भी पश्चिम भाग में भगवान व्यासेश्वर की मूर्ति विराजमान है जिसे साधारण जनता छोटा वेदव्यास के नाम से जानती है, जहाँ माघ में प्रत्येक सोमवार मेला लगता है। गुरु पूर्णिमा का प्रसिद्ध पर्व व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में ही मनाया जाता है।
सनातन मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास जी कलयुग के अंत तक इस पृथ्वी पर रहेंगे, जब भगवान का कल्कि अवतार होगा तब महर्षि वेदव्यास उनके साथ ही रहेंगे।