सनातन धर्म में आदि पंच देवों का खास महत्व है, इनमें श्रीगणेश, भगवान विष्णु, मां दुर्गा, भगवान शिव व सूर्य देव /भगवान सूर्य नारायण शामिल हैं। मान्यता है कि सत्ययुग तक इन सभी देवताओं के आसानी से दर्शन हो जाते थे, लेकिन जैसे जैसे समय बदलता गया ये देव अदृश्य व अंतध्र्यान होते गए। ऐसे में कलयुग के आते ही सूर्यदेव/सूर्यनारायण को छोड़कर सभी देव अदृश्य हो गए। ऐसे में कलयुग के एकमात्र दृश्य/प्रत्यक्ष देव सूर्यदेव ही रह गए।
सूर्य को हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्माण की आत्मा माना गया है। ऐसे में माना जाता है कि रविवार को सूर्यदेव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माना जाता है कलयुग में एकमात्र दृश्य/प्रत्यक्ष देव सूर्य देव की उपासना से स्वास्थ्य,ज्ञान,सुख,पद,सफलता,प्रसिद्धि आदि की प्राप्ति होती है।
सूर्यदेव की पूजा सामग्री…
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार सूर्यदेव की पूजा में कुमकुम या लाल चंदन, लाल फूल, चावल, दीपक, तांबे की थाली, तांबे का लोटा आदि होना चाहिए। वहीं इनके पूजन में आह्वान, आसन की जरुरत नहीं होती है। मान्यताओं के अनुसार उगते हुए सूर्य का पूजन उन्नतिकारक होता हैं। इस समय निकलने वाली सूर्य किरणों में सकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक होता है। जो कि शरीर को भी स्वास्थ्य लाभ पंहुचाती हैं।
श्री सूर्यनारायण की पूजन विधि
सूर्य पूजन के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करें। लाल चंदन और लाल फूल की व्यवस्था रखें। एक दीपक लें। लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी लाल चंदन का पाउडर मिला लें। लोटे में लाल फूल भी डाल लें। थाली में दीपक और लोटा रख लें।
अब ‘ऊँ सूर्याय नम:’ मंत्र का जप करते हुए सूर्य को प्रणाम करें। लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जप करते रहें। इस प्रकार से सूर्य को जल चढ़ाना सूर्य को अर्घ्य प्रदान करना कहलाता है। ‘ऊँ सूर्याय नम: अर्घ्यं समर्पयामि’ कहते हुए पूरा जल समर्पित कर दें।
अर्घ्य समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिम्ब एक बिन्दु के रूप में जल की धारा में दिखाई देगा। सूर्य को अर्घ्य समर्पित करते समय दोनों भुजाओं को इतना ऊपर उठाएं। कि जल की धारा के बीच में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। सूर्य देव की आरती करें। सात प्रदक्षिणा करें व हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
रोग मुक्ति के लिए सूर्य उपासना
भारत के सनातन धर्म में पांच देवों की आराधना का महत्व है। आदित्य (सूर्य), गणनाथ (गणेशजी), देवी (दुर्गा), रुद्र (शिव) और केशव (विष्णु), इन पांचों देवों की पूजा सब कार्य में की जाती है।
इनमें सूर्य ही ऐसे देव हैं जिनका दर्शन प्रत्यक्ष होता रहा है। सूर्य के बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता। सूर्य की किरणों से शारीरिक व मानसिक रोगों से निवारण मिलता है। शास्त्रों में भी सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है।
सूर्य की उपासना की प्रमुख बात यह है कि व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व उठ जाना चाहिए। इसके बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध, स्वच्छ वस्त्र धारण कर ही सूर्यदेव को अघ्र्य देना चाहिए। माना जाता है कि सूर्य के सम्मुख खड़े होकर अर्घ्य देने से जल की धारा के अंतराल से सूर्य की किरणों का जो प्रभाव शरीर पर पड़ता है उससे शरीर में विद्यमान रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा का संचार होने से सूर्य के तेज की रश्मियों से शक्ति आती है।
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सूर्य को अर्घ्य दिए जाने के प्रकार
अर्घ्य दो प्रकार से दिया जाता है। संभव हो तो जलाशय अथवा नदी के जल में खड़े होकर अंजली अथवा तांबे के पात्र में जल भरकर अपने मस्तिष्क से ऊपर ले जाकर स्वयं के सामने की ओर उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। वहीं दूसरी विधि में अर्घ्य कहीं से भी दिया जा सकता है। नदी या जलाशय हो, यह आवश्यक नहीं है।
इसमें एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें चंदन, चावल तथा फूल (यदि लाल हो तो उत्तम है अन्यथा कोई भी रंग का फूल) लेकर प्रथम विधि में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। चढ़ाया गया जल पैरों के नीचे न आए, इसके लिए तांबे अथवा कांसे की थाली रख लें।
थाली में जो जल एकत्र हो, उसे माथे पर, हृदय पर और दोनों बाहों पर लगाएं। विशेष कष्ट होने पर सूर्य के सम्मुख बैठकर ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ या ‘सूर्याष्टक’ का पाठ करें। सूर्य के सम्मुख बैठना संभव न हो तो घर के अंदर ही पूर्व दिशा में मुख कर यह पाठ कर लें। इसके अलावा निरोग व्यक्ति भी सूर्य उपासना द्वारा रोगों के आक्रमण से बच सकता है।
सूर्य
सूर्य ग्रह से ही हमें ऊर्जा व प्रकाश प्राप्त होता है। यह हमारे जीवन को प्रकाशमय करते हैं। हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए सूर्य देव समान हैं। हिंदू धर्म में इनकी उपासना की जाती है। परंतु इसका एक और पहलू है वैदिक ज्योतिष में सूर्य एक ग्रह के रूप में हैं और ग्रहों में ये श्रेष्ठ माने जाते हैं। इस लेख में हम सूर्य ग्रह के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम जानेंगे कि सूर्य (sun) का वैदिक ज्योतिष में क्या महत्व है? इसके साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य को क्यों महत्व दिया जाता है? सूर्य की पौराणिक मान्यता क्या है? सूर्य मंत्र, रत्न, रंग क्या है? इस लेख में हम इन्हीं बिंदुओं पर बात करेंगे।
सूर्य ग्रह
सूर्य ग्रह को यदि खगोलीय दृष्टि से देखा जाए तो यह सौर मंडल में केंद्र में स्थित है। जिसके चलते यह पृथ्वी से काफी करीब है। सूर्य के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सूचारू रूप से कालांतर से चला आ रहा है। खगोल विज्ञान की में शुक्र व बुध के बाद सबसे कम है। इसलिए यह पृथ्वी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। वैदिक ज्योतिष में भी सूर्य को काफी महत्व दिया जाता है। सूर्य को क्रूर ग्रह माना जाता है। ये प्रभावी होते हैं तो जातक का समय बदल जाता है।
ज्योतिष में सूर्य ग्रह का महत्व
ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना जाता है। इसके साथ ही ज्योतिष में सूर्य को पिता का प्रतिनिधित्व भी माना जाता है। सूर्य के कारण ही पिता से संतान का संबंध मधुर व कटु बनता है। जब भी किसी जातक की कुंडली का आकलन किया जाता है तो सबसे पहले सूर्य का स्थान देखा जाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को सफलता व सम्मान का कारक कहा जाता है। सूर्य प्रभावी हो तो जातक अपने जीवन में यश प्राप्त करता है। इसके साथ ही वह ओजस्वी व प्रतापी होता है। महिला की कुंडली में सूर्य को पति के सफलता के लिए देखा जाता है। ज्योतिष में सूर्य के नाम से भी राशियों को संबोधित किया जाता है। जिसे सूर्य राशि कहा जाता है। यदि जातक की कुंडली में सूर्य की महादशा चल रही हो तो रविवार के दिन जातक को अच्छे फल मिलते हैं। ज्योतिष में सूर्य सिंह राशि का स्वामी माना गया है और मेष राशि में यह उच्च होता है, जबकि तुला राशि सूर्य (sun) की नीच राशि मानी जाती है।
सूर्य का मानव जीवन पर प्रभाव
सूर्य हमारे ऊर्जा का स्त्रोत है। इन्हीं के कारण हम ऊर्जा वान रहते हैं। प्रकृति का सुचारु रूप से चलना भी सूर्य के ही ज़िम्मे है। इसी प्रकृति का हिस्सा हम भी हैं। जिसके चलते इनका प्रभाव हम पर पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार जिस जातक की कुंडली में सूर्य लग्न में विराजमान होते हैं उसका चेहरा बड़ा और गोल तथा आँखों का रंग शहद के समान होता है। जातक के शरीर में सूर्य हृदय को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में अंतर्गत सिंह राशि हृदय को इंगित करती है। शारीरिक संरचना व ज्योतिष के अनुसार सूर्य पुरुषों की दायीं आँख व स्त्रियों की बायीं आँख को दर्शाता है।
ज्योतिष के मुताबिक यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य बली है तो जातक अपने जीवन में सभी लक्ष्यों की प्राप्ति करता है। जातक के अंदर गजब का साहस देखने को मिलता है। इसके साथी वह प्रतिभावान व नेतृत्व क्षमता से परिपूर्ण होता है। जीवन में उसे मान सम्मान की कमी नहीं होती। जातक ऊर्जावान, आत्म-विश्वासी व आशावादी होगा। जातक उपस्थिति के कारण घर में ख़ुशी, आनंद का माहौल बना रहा है। जातक दयालु होता है। रहन सहन शाही हो जाती है। ऐसे जातक अपने कार्य व संबंधों के प्रति काफी वफ़ादार होते हैं। कुंडली में सूर्य (sun) का उच्च व प्रभावी होना सरकारी नौकरी की ओर इशारा करता है। जातक जीवन में उच्च पद प्राप्त करता है।
जिस जातक की कुंडली में सूर्य पीड़ित होते हैं या प्रभावी नहीं होते हैं उन जातकों पर इसका गहरा असर पड़ता है। ऐसे में जातक अहंकारी हो जाता है। क्रोध जातक की नाक पर सवार रहती है। जिसके कारण उसके कई काम बिगड़ जाते हैं। जातक छोटी –छोटी बातों को लेकर उदास हो जाते हैं। इसके साथ ही वे किसी पर भी विश्वास नहीं कर पाते हैं। जातकों के अंदर ईर्ष्या व्याप्त हो जाता है। जातक महत्वाकांक्षी होने के साथ आत्म केंद्रित भी बन जाते हैं। जिसके कारण इनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में भी कमी आती है।
सूर्य की पौराणिक मान्यता
सूर्य को सौर मंडली का राजा माना जाता है। इसके साथ ही हिंदू पौराणिक कथाओं में सूर्य (sun) को देव कहा गया है। सूर्य की आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं और इनकी माता अदिति हैं। जिसके कारण सूर्य का एक नाम आदित्य भी है। जैसा की आपने देखा होगा। आपके घर में या आस पड़ोस में कोई लोग सूर्य को नित्य दिन जल अर्पित व सूर्य नमस्कार करते हैं। क्योंकि जातक इसके चिकित्सीय और आध्यात्मिक लाभ को पाने के लिए ऐसा करते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार रविवार का दिन सूर्य के लिए समर्पित है जो कि सप्ताह का एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
यंत्र – सूर्य यंत्र
मंत्र – ओम भास्काराय नमः
रत्न – माणिक्य
रंग – पीला/ केसरिया
जड़ – बेल मूल
उपाय – यदि जातक की कुंडली में सूर्य कमजोर या पीड़ित हैं तो जातकों को हृदय आदित्य स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही सूर्य (sun) उपासना करना जातक के लिए शुभफलदायी होगा