नाथ संप्रदाय मे कर्ण भेदन चीरा संस्कार पद्धति
शिव गोरख सर्वोपरी🌝



👉🏻नए नाथ को चीरा देते समय चीरा धारण करने वाले को चीरा गुरु के समक्ष बेठाया जाता है !
उसके दोनो कर्ण के समक्ष गौ भस्म सूर्य चंद्र नाम दो ढेरियां रखी जाती है ! गौभस्म से चीरे का निशान लगाया जाता है ! ताकि चीरे का जो रक्त है वह उन ढेरियो पर ही पड़ता है ! जो धरती माता मे समाधिस्थ किया जाता है !
👉🏻 चीरा देने की पद्धती मे चीरा गुरु द्वारा अभिमंत्रण सूर्य एवं चंद्र इसके प्रत्यक्ष साक्षी माने जाते ! इन दो ढेरियो के मध्य चीरा लेने वाले शिष्य के समक्ष भस्म की तीसरी ढेरी भी लगाई जाती है ! जिसमे दो धारी नोकदार छुरी की नोक पृथ्वी की और करके रखी जाती है ! चीरा धारण करने वाला तीन बार करद उठाकर गुरु को चीरा देने का आग्रह करता है ! फिर गुरु उसे योगारम की कठोर साधना एवं तप से अवगत कराते है एवं उसे समझा कर पुनः घर लौटने का आदेश करते है !
अतः👉🏻 योग मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा करने वाले को ही चीरा दिया जाता है !
सतयुग मे जौ प्रमाण चीरा सकल श्रृष्टि का विधान कहाः गया है !
”जौ प्रमाण चीरा दिया सकल श्रृष्टि संसार”
👉🏻 नए नाथ योगी की इस परम्परा का सबसे पहला प्रयोग महायोगी गुरु गोरख नाथ जी ने राजा भर्तहरी जी पर और फिर जालंधर नाथ जी द्वारा गोपीचंद जी पर किया गया !
इसे धारण करने वाली मुद्रा को शिव की मुद्रा या शिव कुंडल भी कहा जाता है !
अतः👉🏻 इस मुद्रा को धारण करने वाले को दर्शनी साधु कहा जाता है !
दर्शनी योगी शिव की काया यह विश्वास विचार .नाथ सिद्ध परंपरा को आदिमानव की श्रेणी मे स्थापित करता है !
वेसे आजकल आदिमानव का अर्थ अनपढ़ गंवार और पिछड़ी जाती है से लगाते है कुछ पढ़े लिखे विद्वान गंवार!
खेर हम आगे बढ़ते है !
नवे नाथ बनाने के अनुष्ठान मे गायत्री मंत्र जाप आदि का जाप महत्वपूर्ण है !
👉🏻माताओं की कान की बालीयां और पुरुषो की मुर्कीयां नाथसंप्रदाय की और शिव शक्ति की पहचान है !
चीरा देते समय नए नाथ के मुख से दो बार अक्षरध्वनि ”सी” स्वतः मुखरित होती है ! ”सी” बच्चे को जन्म देते ही प्रसूता के मुख से भी मुखरित होती है !
अतः 👉🏻चीरा देकर नया नाथ बनना नए जन्म होने के बराबर माना जाता है !
गंगाजल चीरा विधान के समापन की प्रथा का आवश्यक अंग है !
अतः पृथ्वी गौ , गंगा , गायत्री नाथसंप्रदाय मे स्वाभाविक उदघोष है !
वेसे 👉🏻कर्ण वेधन प्रथा सतयुग से चली आ रही है ! यह परंपरा अक्षर को प्रस्फुटित कराने का गुप्त मार्ग है जिसे नाथ संप्रदाय ने अधिकाधिक मुखरित कर दिया है !
अक्षर को गुप्त व प्रकट करने को ही शिवगोरख गुरुमंत्र के रूप मे निर्धारित किया गया है ! ब्रम्हांड की समस्त ध्वनिया इसी मे उत्पन्न होकर इसी मे लींन होजाती है !
शिव🙏🏻🌺😌🌺🙏🏻गोरख
चाँद सूरज की मुद्रा पहनी धरण भस्म जल थाला है !
नादी बिन्दी सिंगी अकाशी अलख गुरां जी का बाला है !
श्री नाथ सिद्धो को आदेश आदेश 🙏🏻
😌पल पल शिव हर पल गोरख 😌

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