महायोगी गोरक्षनाथ जी द्वारा प्रतिपादित योग मार्ग
सिर्फ भारत और सनातन धर्म तक सीमित न रह कर,
अरब सागर के भी पार काबुल कंधार, अफगानिस्तान और मक्का तक प्रचारित हुआ, मान्यता है कि
इस्लाम की स्थापना पैगम्बर मुहम्मद साहब द्वारा
होने से पूर्व उनकी भेट गोरक्षनाथजी से हुई थी,
और वह ज्ञान चर्चा नाथ संप्रदाय में “मुहम्मद बोध”
के नाम से प्रख्यात है,
गोरक्ष नाथजी के प्रभाव से अनेको मुस्लिम अनुयायियों ने
भी योग मार्ग में दीक्षा ग्रहण की और नाथ मार्ग का प्रचार किया,
इस कारन नाथ और मुस्लिम संतो में “पीर” शब्द सामान रूप से
देखने मिलता है
जगतगुरु गोरक्षनाथजी की तरह उनके शिष्य सिद्ध योगी
पीर रतननाथजी ने भी मक्का जा कर अनेको उपदेश दिए,
हज़रत मोहम्मद और पीर रतन नाथजी के बिच जो चर्चा हुई वह आज भी ‘रतन नाथ के हदीस’ के नाम से संग्रहीत है.
नैन तो नबी है
मन तो मक्का है
ध्यान से देखो मोहम्मद इस काया में तुम्हारा अल्लाह है
मन को साफ करो तो किसी मक्का से कम नहीं
उनका आंखों देखा वर्णन ही इस शबदी में योगी रतननाथ जी ने कहा,
लोहा पीर, तांबा तकबीर,
रूपा महंमद सोना खुदाई |
दुहूँ बीचि दुनियां गोता खाई,
हम तो निरालम्भ बैठे देखत रहै,
ऐसा एक सुखन बाबा रतन हाजी कहै ||
जो वहां पीर है, वह लोहा हैं और उनकी युक्तियां तांबा |
मुहम्मद चांदी है, तो खुदा सोना है |
वहां ईश्वर भी है, तो पैगम्बर भी है ।
सब द्वैत में फंसे हैं ।
बाबा रतन हाजी ने निरपेक्ष भाव से, तटस्थ हो कर देखा है कि ,
सब दुनियां मुहम्मद और खुदा के द्वैत के बीच गोता खा रही है ।
इन मार्गो में समन्वय देखे तोह नाथो की तरह यह भी
एक परमात्मा (अलख – अल्लाह) की ही उपासना करते है
जब भारत में मुस्लिम अक्रांताओ द्वारा हिंसात्मक रूप से
अपने मार्ग (इस्लाम) का जबरन प्रचार करने लगे
और इस हिंसा को कुरान और पैगम्बर मुहम्मद के नाम कर दिया
तोह इस पाखंड को देखते हुए गोरक्ष नाथजी ने फटकार देते हुए कहा,
महंमद महंमद न करि काजी, महंमद का विषम विचारं।१।
महंमद हाथि करद जे, होती लोहै घड़ी न सारं।२।
सबदै मारी सबदँ जिलाई, ऐसा महंमद पीरं।३।
ताकै भरमि न भूलौ, काजी सो बल नही सरीर।૪।
महायोगी गोरखनाथ जी कहते है की हे काजी “मुहम्मद मुहम्मद ” न करो (क्योकी तुम मुहम्मद को जानते नही हो। तुम समझते हो कि जीव हत्या करते हुए तुम मुहम्मद के मार्ग का अनुसरण कर रहे हो)
परन्तु मुहम्मद का विचार बहुत गंभीर और कठिन है।
मुहम्मद के हाथ मे जो छुरी (करद) थी वह न लोहे की गढ़ी हुई थी
न कोई अन्य धातु की जिससे जीव हत्या होती है।
(जिस छुरी का प्रयोग मुहम्मद करते थे वह सूक्ष्म छुरी “शब्द” की छुरी थी।) वह शिष्यों की भौतिकता को इसी शब्द की छुरी से मारते थे जिससे वे संसार की विषय वासनाओ के लिए मर जाते थे।
परन्तु उनकी यह शब्द की छुरी वस्तुत: जीवन प्रदायिनी थी क्योकी उनकी बहिर्मुखता के नष्ट हो जाने पर ही उनका वास्तविक आभ्यंतर आध्यात्मिक जीवन आरम्भ होता था।
मुहम्मद ऐसे पीर थे। हे काजियो, उनके भ्रम मे न भूलो,
तुम उनकी नकल नहीं कर सकते।
तुम्हारे शरीर मे वह (आत्मिक) बल ही नही है,
जो मुहम्मद में था।
( गोरक्षनाथ जी कह रहे है की मुहम्मद जिन बातों को आध्यात्मिक दृष्टि से कहते थे, उनको उनके अनुयायियों ने भौतिक अर्थ मे समझा)
श्री नाथजी गोरक्ष की तरह अन्य नाथ सिद्धों और सूफी
पीर हजरत और मुस्लिम संतो ने भी इस तरह के पाखंड
और कट्टरता को टोकते हुए सहज मार्ग का अनुसरण करनेको कहते है
मुल्तान के सूफ़ी संत एवं कवि बाबा बुल्लेशाह ने
अपनी एक रचना में कहा है
सिर ते टोपी ते नियत खोटी,
लेना की टोपी सिर धर के ।
चिल्ले कित्ते पर रब्ब न मिल्या,
लेना की चिल्ल्यां विच वड के ।
तस्वीह फेरी पर दिल न फड़या,
लेना की तस्वीह हथ फड़ के ।
बुल्लेया जाग बिना दूध नहीं जम्म्दा,
पांवे लाल होवे कड कड के ।
सर पर टोपिया पहनने का क्या फायदा
जब नीयत में अहंकार और खोट हो,
अर्थात बाहरी पहनावे से जीवन में
आध्यात्मिकता नहीं आती.
चिल्ले ( एकांत साधना ) करने से रब्ब
(अलख इलाही) या ईश्वर नहीं मिलेगा क्योंकि
एकांत स्वयं में होना चाहिए, न कि बाहरी रूप से,
तस्वीह (माला) फेरने से क्या लाभ जब दिल (मन) से तो सम्पर्क किया ही नहीं, मन पूर्ण रूप से ईश्वर में न लगाते हुए सांसारिक प्रपंचों में फसा रहा,
पीर बुल्लेशाह कहते है खमीर (खटास) के बिना दूध नहीं जमता चाहे काढ़ काढ़ कर लाल कर लो.
यानि जब तक अंतर् मन में बैठे परमात्मा से
राप्ता – संपर्क नहीं होगा , तोह फिर
शरीर को गलाने या झूठ मूठ के पाठ पढ़ने से
कुछ प्राप्त नहीं होने वाला.
इस तरह के अनेको उदाहरण है जिनमे तथाकथित
कट्टरपंथ को मानने वालो को,
संतो और योगियों ने फटकार देते हुए सहज और समरसता वाले
योग मार्ग का अनुसरण करने कहा है,
दरवेश सोई जो दर की जांणै,
पंचै पवन अपूठा आंणै ||
सदा सुचेत रहै दिन राति,
सो दरवेस अलह की जाति ||
दरवेश (पीर फ़क़ीर अथवा इमाम) वह हैं जो दर दर की जानता है,
घट घट की जानता है, जो परमात्मा के दर को,
घर को जानता है, जो पांचों पवनों को अर्थात् प्राणायाम के द्वारा पांचों इन्दियों को उनके विषय-विकारों से अलग कर लेता है
और दिन रात सचेत रहता है,
वह दरवेश अल्ला की जाति का हो जाता है
अर्थात् स्वयं ब्रह्म-स्वरूप हो जाता है ।
लिखतं – योगी अवंतिकानाथ,
गुरु श्री श्री १०८ महंत योगी
तुलसीनाथ जी महाराज
(गिरनार)
चित्र – मुस्लिम मलंग पीर,
नाथ मुद्राओं (कुंडल) के साथ
(अजमेर शरीफ दरगाह)
अलख आदेश 🌿
ॐ शिव गोरक्ष 🌙