कर्नाटक जहाँ मिले थे पहलीवार श्रीराम जी से हनुमानजी
भारत की देव कथाओं में संस्कृतियों का मिलन देखा गया है। रामायण की कहानी देखें तो यह उत्तर से दक्षिण की ओर यात्रा कराती है। अयोध्या से लंका तक का सफर हमें भारत के कई स्थानों पर ले जाता है। रामायण में जिन स्थानों का वर्णन मिलता है, उनमें से अधिकतर आज भी उस काल की निशानियों को सहेजे हुए हैं।
ऐसा ही एक स्थान है किष्किंधा नगर। किष्किंधा नगर वानरों का साम्राज्य था जिस पर सुग्रीव के भाई बाली का राज था। श्रीराम ने बाली को मार कर सु्ग्रीव को राजा बनाया। हनुमानजी और श्रीराम की पहली मुलाकात भी इसी नगर के पास जंगलों में हुई थी। इस क्षेत्र में आज भी उस काल की यादों बसी हुई हैं। यह नगर पर्यटन का प्रमुख केंद्र भी है।
उस काल का किष्किंधा नगर आज भी कर्नाटक राज्य में है। राज्य के दो जिले कोप्पल और बेल्लारी में रामायण काल के प्रसिद्ध किष्किंधा क्षेत्र के अस्तित्व के अवशेष आज भी पाए जाते हैं।
दण्डक वन का एक भाग था किष्किंधा
यहां छोटी-बड़ी चट्टानों से बने पर्वत एक-दूसरे से सटे खड़े हैं। यहां चावल की खेती बड़े पैमाने पर होती है। रामायण में यहां की एक नदी तुंगभद्रा का उल्लेख मिलता है। ये नदी अभी भी है और कर्नाटक की प्रमुख नदियों में गिनी जाती है।
श्रीराम के युग में यानी त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग हुआ करता था। दण्डक वन का विस्तार विंध्याचल से आरंभ होता था और दक्षिण भारत के समुद्री क्षेत्रों तक पहुंचता था। भगवान श्रीराम को जब वनवास मिला तो अपने भाई और पत्नी के साथ उन्होंने दण्डक वन में प्रवेश किया। यहां से रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था। श्रीराम सीता को खोजते हुए किष्किंधा में आए।
ऋष्यमूक पर्वत
किष्किंधा उस समय वानरों का देश हुआ करता था। बाली जिसका राजा था। बाली ने सुग्रीव को मार कर नगर से बाहर भगा दिया था। वो ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर बस गया क्योंकि बाली को एक ऋषि ने शाप दिया था कि वो अगर ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ेगा तो मारा जाएगा। इस कारण सुग्रीव अपनी जान बचाने के लिए हमेशा इसी पहाड़ पर रहते थे।
पंपा सरोवर
ब्रह्माजी ने सृष्टि के आरंभ में जिन चार सरोवरों की स्थापना की थी, पंपा सरोवर उन्हीं में से एक है। यह सरोवर कमल के फूलों से भरा रहता है। रामायण में उल्लेख आता है कि सुग्रीव को खोजते हुए भगवान राम और लक्ष्मण यहां आये थे। पंपा सरोवर के किनारे लक्ष्मी देवी का मंदिर है।
तुंगभद्रा को पार कर पहुंचे ऋष्यमूक पर…
शांत मुद्रा में स्थित ऋषम्यूक पर्वत के तक पहुंचने के लिए उसके सामने से गुजरती तुंगभ्रदा नदी के शोर को पार करना पड़ता है। नदी पार करने के लिए सरकार ने कोई औपचारिक पुल नहीं बनाया है, लेकिन स्थानीय लोगों ने बिजली के खंभों को लिटाकर अनौपाचारिक पुल का निर्माण कर दिया है। यह वही पर्वत है, जहां बाली से भयभीत होकर सुग्रीव अपने चार मंत्रियों के साथ रहते थे। शाप के कारण बाली यहां नहीं आ सकता था। जब रावण सीता का हरण करके आकाश मार्ग से उन्हें ले जा रहा था, तो सीता ने इसी पर्वत पर बैठे सुग्रीव आदि अन्य वानरों को देख अपने आभूषण गिराये थे। इसी पर्वत पर हनुमानजी ने भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता करवाई थी।
सनातनसर्वश्रेष्ठहै🚩
जय श्री राम
जय हनुमान