प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्रका पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्नकर्म करने के लिए ,जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की हर जाति वर्ग , किसी न किसी ऋषि कीसंतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नीकुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य हैं ।जीवन में कुलदेवता का स्थानसर्वश्रेष्ठ है | आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य केविषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है |पंडित दयानन्दशास्त्री ने बताया की पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान केवरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हेंपूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों कीरक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं सेरक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करतेरहें |कुलदेवी/देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घरपरिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है ।सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्योंजैसी महत्वपूर्ण होती है । अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजाएवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कीयदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही करसकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी /माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोइ भी आपके भले के लिया आपकेघर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी ” होते है।सकर सांसारिक लोगोको कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना चाहिये,ऐसेअनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछभी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी /देवता को भुला देने मात्र सेवे हट नही जाते , वे अभी भी वही रहेंगे । यदि मालूम न हो तो अपने परिवार यागोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता।/देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जाननेकी कोशिश करे की झडूला / मुण्डन सस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होताहै , या “जात” कहा दी जाती है । या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां )कहा होता है। हर गोत्र / धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: येकर्म कुलदेवी/कुलदेवता के सामने होते है. और यही इनकी पहचान है ।पंडितदयानन्द शास्त्री ने बताया की समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानोंपर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापितहोने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयतापनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपनेकुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुलदेवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ,इनमें पीढ़ियोंसे शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ,कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले औरहर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवाअपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्याननहीं दिया |कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोईख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तोपरिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोकप्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नतिनहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू होजाती हैं ,व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलताक्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है ,अतःज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है ,भाग्य कुछ कहता है औरव्यक्ति के साथ कुछ और घटता है|पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कुलदेवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मकऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससेसंघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ,यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरणके प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं ,यही किसी भी ईष्ट को दी जानेवाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ,,यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती हैतो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ,,ऐसे में आप किसीभी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्यकरना बंद कर देता है ,,बाहरी बाधाये ,अभिचार आदि ,नकारात्मक ऊर्जा बिनाबाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है ,,कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दीजा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ,अर्थातपूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है| ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तताअथवा उनके कम शशक्त होने से होता है ।कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयीहै, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है (निर्वंशीहो रहे हों , आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवाअकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।समय क्रम मेंपरिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पानेआदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हेंमालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकीपूजा की जाती है । इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ।पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हरबात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनीवर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहींदिया |पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपनेलिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरूकिया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहेजिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहेतथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे |पंडितदयानन्द शास्त्री ने बताया की कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति केपारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति ,उलटफेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं ,सामान्यतया इनकीपूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार केअनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ,,शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जातीहैं ,,,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रखमूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिकशक्तियों के लिए खुल जाता है ,परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरूहो जाती हैं ,,अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवीको जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवारकी सुरक्षा -उन्नति होती रहे ।कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता कीतरह रोजाना करना चाहिये, खासकर सांसारिक लोगो को !अकसर कुलदेवी ,देवता औरइष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है , इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परेहोती है.जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या यादकरना , विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तोपहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्यमें उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि। पंडित दयानन्दशास्त्री ने बताया की इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदिआपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी तब भी कुलदेवीदेवता नही बदलेंगे , क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है . किन्तुधर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुल देवी देवता का भी त्याग कर दिया तोजीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश , दरिद्रता, बीमारिया , दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजहसे दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते भी होते भी देखा गया है.ऐसे अनेकपरिवार भी मैंने देखा है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भीनही मालूम || एक और बात ध्यान देने योग्य है- किसी महिला का विवाह होने केबाद ससुराल की कुलदेवी /देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के।इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गयेपरिवार के कुल देव उपास्य होंगे।