बाबा जित्तो का जीवन एक प्रेरणाप्रद दास्तान है, जिसके कई पहलु मानवीय जीवन की उस महानता को प्रदर्शित करते हैं कि इंसान भगवान की प्रार्थना से बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। अन्याय के सामने कभी किसी का सिर नहीं झुकना चाहिए। अन्याय का फल बुरा होता है। बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए।
कहते हैं कि कोई साढ़े पांच सौ वर्ष पहले रियासी तहसील के गांव अघार में एक गरीब ब्रह्मण रूप चंद रहता था। उसके यहां बेटा पैदा हुआ जिसका नाम जेतमल रखा गया। वह होनहार बच्चा चंचल तो बचपन से ही था, साथ में धार्मिक कार्यो में भी रुचि लेने लगा था। गांव वाले उसे मुनि कहने लगे।
जेतमल जब बड़ा हुआ तो उसका विवाह माया देवी से हुआ। माया देवी व मुनि दोनों ही घर में बजुर्गो की सेवा करने लगे, पर उनके देहांत पर वे परेशान हो गए, जिस पर उन्होंने माता वैष्णो देवी साधना व भक्ति प्रारंभ कर दी।
कहते हैं कि माता वैष्णो देवी की भक्ति के दौरान जेतमल मुनि को सपना आया कि उनके यहां पुत्री पैदा होगी जिसके साथ उनकी सदियों तक पूजा होती रहेगी और आने वाली पीढ़िया याद रखेंगी। इसके कुछ समय बाद जेतमल के यहां एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया, लेकिन लड़की के जन्म के साथ ही उसकी पत्नी माया का निधन हो गया जिसका मुनि जेतमल को भारी सदमा पहुंचा।
मुनि जेतमल बच्ची का पालन पोषण करने लगे। उन्होंने बच्ची का नाम गौरी रखा लेकिन जब गौरी बड़ी हुई तो बीमार हो गई, इसलिए वह परेशान हो गए। स्थानीय वैद्य उपचार करने में असफल हो गए, जिस पर जेतमल ने वातावरण बदलने के लिए गांव छोड़ने का फैसला किया और वहां से अपनी बेटी गौरी और कुत्ते के साथ तहसील जम्मू के गांव कानाचक्क के इलाके में पिंजौड़ क्षेत्र में अपने एक दोस्त राहदू के यहां चले आए। पिंजौड़ यानी पंचवटी को ही अब झिड़ी कहा जाता है।
जेतमल ने वहां एक जगह तलाश करके खेतीबाड़ी का काम शुरू करना चाहा, लेकिन वह जगह एक जागीरदार बेरसिंह की जागीर में आती थी। अतः बेरसिंह ने जेतमल को बंजर जमीन खेती के लिए इस शर्त के अंतर्गत दी जिस में यह कहा गया था कि जेतमल यानी जित्तो जागीरदार को अपनी खेती की पैदावार का एक चौथाई हिस्सा दिया करेगा।
परंतु जब जेतमल के कड़े परिश्रम के बाद उस जमीन में काफी फसल पैदा हुई तो वह जागीरदार लालची हो गया और अनाज के ढेर देखकर चौथाई हिस्से के बजाय पैदावार का आधा हिस्सा मांगने लगा, लेकिन जेतमल निर्धारित शर्त से अधिक अनाज देने को तैयार नहीं हुआ इस पर जागीरदार ने आग बबूला होकर अपने कारिंदों को वह अनाज उठा लेने का आदेश दिया। कहते हैं कि जेतमल ने मां भगवती का स्मरण किया जिस पर उन्हें यह प्रेरणा मिली कि वह अन्याय के खिलाफ अपनी जान कुर्बान कर दें।
जेतमल ने इतना कहा : सुक्की कनक नीं खाया मेहतया, अपना लयु (लहू) दिना मिलाई और मेहनत से पैदा किए गए अनाज को लूटने आए जागीरदार के कारिंदों के सामने वहीं कटार से अपने जीवन का अंत कर दिया। अनाज खून से रंग गया तथा जागीरदार बेरसिंह यह घटना देखकर ढंग रह गया।
उसी समय अचानक तूफान आया व वर्षा हुई जिससे वह अनाज बिखर गया तथा जेतमल की बेटी ने बाप की चिता जलाई और खुद भी उसमें ही भस्म हो गई। तबसे जेतमल बाबा जित्तो कहलाने लगा और जागीरदार का सारा खानदान बीमार रहने लगा।
इस इलाके के तत्कालीन राजा अजबदेव सिंह ने इस जगह मंदिर व समाधि बनवाए और तब से हर साल शहीद बाबा जित्तो की याद में झिड़ी का मेला लगता है। कई परिवार वहां पहुंचकर पूजा करते हैं और समारोहों में भाग लेते हैं। अन्य लाखों लोग वहां अपनी मनौतियों के लिए पहुंचते हैं।
मेले को सफल बनाने के लिए सरकार की ओर से सुरक्षा और यात्रियों की सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर प्रबंध किए गए हैं। झिड़ी के मेले में आने वाले अनेक श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए भी आते हैं और चारों तरफ चहल पहल हो जाती है। झिड़ी के इलाके में बाबा जित्तो के कई श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की याद में छोटी छोटी समाधियां व मंदिर बनवाए हैं। इस क्षेत्र को बाबे दा झाड़ (तालाब) कहा जाता है। यहां लोग कई रस्में पूरी करने आते हैं। जिसके कारण यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी बढ़ जाती है।