जम्मू कश्मीर : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को श्रीगंगा दशहरा मनाया जाता है इस दिन मां गंगा शिव लोक से भगवान शिव की जटाओं से पृथ्वी पर पहुंची थीं, इसलिए इस दिन को श्रीगंगा दशहरा के रूप में जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन हस्त नक्षत्र में मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थीं, जो कि इस साल 09 जून 2022, गुरुवार को हस्त नक्षत्र प्रात:काल 04:31 बजे से लेकर 10 जून 2022, शुक्रवार को प्रात:काल 03:27 बजे तक रहेगा, जबकि दशमी तिथि 09 जून 2022 को प्रात:काल 08:22 मिनट से प्रारंभ होकर अगले दिन यानि 10 जून 2022 को प्रात:काल 07:27 मिनट तक रहेगी। इस वर्ष श्रीगंगा दशहरा सन् 2022 ई. 09 जून गुरुवार को मनाया जाएगा,इस विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ने बताया,श्रीगंगा दशहरा के दिन जो भक्तगण माँ गंगा नदी तक नहीं पहुँच सकते, वह पास के किसी तालाब, घर में,नदी या जलाशय में माँ गंगा का ध्यान करते हुये श्रीगंगा दशहरा का पूजन संपन्न कर सकते है,श्रीगंगा दशहरा के दिन स्नान,तर्पण करने से मनुष्य के शारीरिक,मानसिक और भौतिक पाप नष्ट होते है,श्रीगंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है, मां गंगा का पूजन व गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है और यश व सम्मान में वृद्धि होती है इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। कोरोना महामारी के चलते घर में ही गंगा जल डालकर स्नान एवं घर के आस पास जरूरतमंद लोगों दान करें। मां गंगा जी की पंचोपचार व षोडशोपचार पूजा अर्चना करनी चाहिए। पूजा में 10 प्रकार के फूल अर्पित करके 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 प्रकार के ऋतु फल, 10 तांबूल, के साथ 10 दीपक प्रज्वलित करने चाहिए। दान जैसे 10 वस्त्र, 10 जल कलश, 10 थाली भोज्य पदार्थ, 10 फल, 10 पंखे, 10 छाते, 10 प्रकार की मिठाई आदि,ये सभी वस्तुएं आप 10 लोगों को दान करके पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर गंगा स्नान के समय कम से कम 10 डुबकी लगानी चाहिए।
धर्मग्रंथों के अनुसार ऋषि भागीरथ के पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए उन्हें बहते हुए निर्मल जल की आवश्यकता थी। जिसके लिए उन्होंने माँ गंगा की कड़ी तपस्या की जिससे माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हो सके। श्रीगंगा जी ने प्रसन्न होकर धरती पर अवतरित होने की बात मान ली, लेकिन उनका वेग इतना तीव्र था कि धरती पर आने से प्रलय आ सकता था,तब भागीरथ ने एक बार फिर तपस्या कर भगवान शिव शंकर जी से मदद की गुहार लगाई,भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं से होकर धरती पर जाने के लिए कहा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन श्रीगंगा जी पृथ्वी पर अवतरित हुई तब से वह दिन ‘श्रीगंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाता है। माना जाता है माँ गंगा अपने साथ पृथ्वी पर संपन्नता और शुद्धता लेकर आई थी। तब से आज तक गंगा पृथ्वी पर मौजूद है। जिनका प्रवाह आज भी शिव जी की जटाओं से ही हो रहा है।
श्रीगंगा दशहरा के दिन जो भी व्यक्ति पानी में श्रीगंगा जल मिलाकर गंगा मंत्र का दस बार जाप करते हुए स्नान करता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है।
गंगा मंत्र: ॐ नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा॥
गंगा एवं अन्य नदियों में पूजन के उपरांत जितना भी चढ़ावा फूल, नारियल, पन्निया और अन्य सामग्री होती है, सभी को नदी में ही प्रवाहित कर दिया जाता है, इससे गंगा एवं अन्य नदियां मैली होती जा रही है। नदियों की स्वच्छता का भी ध्यान रखें।
महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत) संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195