1 शैलपुत्री- मां शैलपुत्री प्रकृति की ‘क्रियात्मक’ तथा ‘भू’ तत्वात्मक दो भावों की संचालिका है। शैल-पुत्री अर्थात् पर्वत की पुत्री। पर्वत भू-तत्वात्मक है। अर्थात स्थूल से उत्पन्न होने वाली गति। ‘पृथ्वी’ तत्व की परिचायिका है। स्थूल शरीर रूपा, धारक शक्ति तथा धैर्यवती तथा परम सहशीलता हैं।
2 ब्रह्मचारिणी- ‘ब्रह्म’ जैसी चर्चा वाली, ब्रह्रमयी ‘जल’ तत्व को हस्तगत रखने वाली परम तेजोमयी शक्ति है। परम वीर्यमयी, चरित्ररूपा शक्ति पुंज है। वीर्य रक्त से बनता है अर्थात रक्त का रूपांतर है। प्रकृति के ‘क्रियात्मक अंग’ तथा जल-तत्वात्मक शक्ति रूपा है।
3 चंद्रघंटा- ‘अग्नि’ तत्व की तेजोमयी मूर्ति ‘मां चंद्रघंटा’ अमृतमयी, स्वब्रह्मामयी रूपिणी है। चंद्र में प्रकाश सूर्य द्वारा प्रकाशित है। चंद्र अर्थात सोमरस प्रदान करने वाली, श्रेष्ठमयी, घण्टा अर्थात ‘अग्नि’ शब्द ध्वनि का परिचायक है, भगवती का अग्निमय, क्रियात्मक स्वरूप है। घण्टे से ‘ब्रह्मनाद’ व अनहत नाद स्वरूपिणी हैं।
4 कूष्माण्डा- ‘वायु’ तत्व की वेगमयी शक्ति माँ ‘कूष्माण्डा’ गत्यात्मक स्वरूपिणी हैं। ‘कूष्माण्ड’ अर्थात गति-युक्त, अण्ड, ‘वायु उत्पन्न करने वाली माँ संसार में निष्क्रियता, तमस का नाश कर ‘चरैवति-चरैवति’ का संदेश प्रदान करती है। समस्त जगत-चराचर की स्वामिनी माँ की जगत की उत्पत्ति, पोषण व विलय का कारण भूत है।
5 स्कन्दमाता- ‘आकाश’ तत्व की स्वामिनि माँ स्कन्दमाता स्वामी कार्तिकेय की जननी है।नवदुर्गाओं में बायीं ओर व दायीं ओर चार-चार कन्यायो तथा बीच में स्कन्दमाता प्रतिष्ठित हैं। सभी तत्वों की मूल बिन्दु हैं। एक ओर पृथ्वी, जल, अग्नि व वायु यह चार तत्व है। कुं + मरयति इति कुमार अर्थात कुत्सिज्ञ विचारों का जो त्याग करे वही कुमार है। दूर विचार का काम, क्रोध, लोभ-मोह आदि अहंकार का जो त्याग करे वहीं कुमार है। ऐसा भक्त जब इस स्थिति में स्थित होकर माँ को पुकारता है तब माता तक्षण उसे ‘कुमार’ की भांति अपनी गोदी में उठा लेती हैं।
6 कात्यायनी- ‘मन’ तत्वात्मक स्वरूप वाली महिषासुर मर्दिनी विश्व के सृजन, पालन व संहार की अधीश्वरी हैं। जीवन व मृत्यु का कारण हमारे मन के भाव ही हैं। समस्त मानसिक, दैविक व दैहिक शक्ति की स्वामिनि माँ कात्यायनी कात्यायन ऋषि की तपस्या के कारण वहां प्रकट हुई थी। समस्त आसुरी शक्ति अविद्या का नाश कर माँ कात्यायनी भक्त को मुक्ति प्रदान करती है।
7 काल-रात्रि- बुद्धि तत्वात्मक स्वरूपा, प्रकृति की ‘क्रियात्मक’ शक्ति है।काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है।
माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचयक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है। सत्य पूर्ण नग्न व सभी आडम्बरों से शून्य होता है।
8 महागौरी-
‘चित्त-तत्वात्मक’ स्वरूपा, महागौरी भगवान शिव की शक्ति हैं। चैतन्यता प्रदान करने वाली ‘चित्त-स्वरूपिणी’ भगवती चैतन्यमयी परम गौर वर्णी है। अंधकार का नाश करने वाली, परम ज्योर्तिमयी प्रकाशमयी शक्ति ही ‘महा गौरी’ वृक्षभ आसन पर आसीन है। वृषभ धर्म का स्वरूप है। धर्म ही अर्थ, काम व मोक्ष को प्रदान करने वाली है। सफेद वस्त्र धारण करने वाली, परम पवित्र भगवती महागौरी हमारे चित्र के समस्त जड़ता अविद्या तमसता का अंत कर चैतन्य का प्रकाश करती हैं।
9 सिद्धिदात्री- सिद्धि प्रदान करने वाली ‘अहं’ तत्वात्मक स्वरूपा माँ सिद्धिदात्री स्वयं का बोध कराती है। बाहर के समस्त जड़ता, अविद्या तथा पंच पाशों का नाश कर ध्यान की ऊँचाइयों को प्रदान करती है। ध्यानस्य होना, समर्पण का भाव हृदय में हो, अहं का विसर्जन होना तथा अपने अहं को परम शक्ति दुर्गा माँ में लीन होना ही परम सिद्धि को प्राप्त करना है। यही सिद्धिदात्री माँ की आराधना का गूढ़-रहस्य है।
जय माता दी 🙏🌹🙏