होली पर्व 18 मार्च शुक्रवार को :- महंत रोहित शास्त्री।

रात्रि पूर्णिमा व्रत 17 मार्च गुरुवार को

दिवा पूर्णिमा व्रत 18 मार्च शुक्रवार को

जम्मू कश्मीर : – होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इस विषय में श्री कैलख  ज्योतिष एंव  वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया की होली के पर्व से आठ दिन पहले होलाष्टक प्रारम्भ होते हैं इस वर्ष 10 मार्च गुरुवार से होलाष्टक शुरू हुए थे, इस दौरान रुद्राभिषेक ,नवग्रह शांति अनुष्ठान आप इस समय करा सकते हैं परन्तु कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह , ग्रह प्रवेश , मुंडन आदि वर्जित हैं।

महंत रोहित शास्त्री ने बताया इस वर्ष होली का पर्व 18 मार्च शुक्रवार को मनाया जाएगा । पूर्णिमा तिथि का आरंभ 17 मार्च गुरुवार दोपहर 01 बजकर 30 मिनट पर होगा एवं पूर्णिमा तिथि समाप्त 18 मार्च शुक्रवार दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगी,होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 17 मार्च गुरुवार को है जिसका समय शाम 6 बजकर 34 मिनट से लेकर रात्रि 08 बजकर बजकर 57 मिनट तक रहेगा। होलिका दहन ज्यादातर उत्तर प्रदेश, विहार आदि प्रदेशों में किया जाता है।

महंत रोहित शास्त्री ने बताया की होली एक सामाजिक पर्व है जो हिन्दू धर्म में विशेष स्थान रखता है होली  का  त्योहार पूरे भारत में बड़े उत्साह से  मनाया जाता है  होली का  पर्व अपने उद्भवकाल से ही जहां हास-परिहास एवं मनुष्य की आसुरी वृत्तियों के दहन-विरचेन का पर्व रहा है। वहीं  यह पर्व प्रत्येक युग परिस्थितियों में सांस्कृतिक परम्पराओं से ताल मेल बैठाते हुए सामाजिक समरसता, जातिगत सौहार्द और धार्मिक सद्भावना को प्रोत्साहित करने का भी लोकपर्व रहा है जो सभी के जीवन में वास्तविक रंग और आनंद लाता है। रंगों के माध्यम से सभी के बीच की दूरीयाँ मिट जाती है इस दिन सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग आपसी भेदभाव मिटाकर एक दुसरे को रंग लगाकर  होली के पर्व को मनाते हैं  महंत रोहित शास्त्री ने बताया की होली रंगो  का त्यौहार है पर आज के इस आधुनिक युग के  समय में रासायिनक रंगों ने प्राकृतिक रंगों  का स्थान ले लिया है जो की शरीर की त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं इसलिए इसे सावधानी से मनाया जाना भी जरुरी है तथा प्राक्रतिक रंगों का ही  प्रयोग करना चाहिए जो की नुकसानदायक नहीं होते हैं ।

क्यों मनाते है होली हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था जिसका प्रह्राद नाम का एक पुत्र था। प्रह्राद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था लेकिन हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी था। वह नहीं चाहता था कोई उसके राज्य में भगवान विष्णु की पूजा करें। वह अपने पुत्र को मारने का कई बार प्रयास कर चुका था लेकिन बार-बार असफल हो जाता था। तब हिरण्यकश्यप ने  भक्त प्रह्राद को मारने के लिए लिए अपनी बहन होलिका को भेजा,होलिका को एक वरदान मिला था कि वह आग से नहीं जलेगी। तब हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका ने प्रह्राद को गोद में बैठाकर आग में कूद गई। लेकिन प्रह्राद ने लगातार भगवान विष्णु के जाप के चलते प्रह्राद को कुछ नहीं हुआ और होलिका खुद आग में जल गई। तभी से होलिका दहन का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई। 

*महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य)

प्रधान श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट(पंजीकृत) रायपुर ठठर जम्मू कश्मीर। संपर्कसूत्र 9858293195,7006711011,9796293195.

ईमेल : rohitshastri.shastri1@gmail.com

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