सुलोचना (सुलोचना = सु+लोचना अर्थात् सुंदर नेत्रों वाली) नागराज शेषनाग और देवी नागलक्ष्मी की पुत्री तथा रावण पुत्र इंद्रजीत (मेघनाद) की पत्नी थी। जब
शूर्पणखा का नाक लक्ष्मण द्वारा काटा गया जिससे उसके भाई रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया। सीता माता को छुड़ाने के लिये प्रभु राम लंका पहुंचे और वहाँ युद्ध छिड़ गया। इसी दौरान लक्ष्मण द्वारा रावण पुत्र मेघनाद का वध हो गया। वध के पश्चात मेघनाद का हाथ सुलोचना के समक्ष आकर गिरा। सुलोचना ने सोचा कि पता नहीं यह उसके पति की भुजा है भी या नहीं अतः उसने कहा – “अगर तुम मेरे पति का भुजा हो तो लेखनी से युद्ध का सारा वृत्तांत लिखो।” हाथ ने लिखा “प्रिये! हाँ यह मेरा ही हाथ है। मेरी परम् गति प्रभु राम के अनुज महा तेजस्वी तथा दैवीय शक्तियों के धनी श्री लक्ष्मण के हाथों हो गई है, मेरा शीश श्रीराम के पास सुरक्षित है। मेरा शीश पवनपुत्र हनुमान जी ने रामचंद्र के चरणों पर रखकर मुझे सद्गति प्रदान कर दी है
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सुलोचना ने निश्चय किया कि ‘मुझे अब सती हो जाना चाहिए।’ किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती !
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जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा, तब रावण ने उत्तर दियाः
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देवी ! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो।
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जिस समाज में बालब्रह्मचारी श्रीहनुमान, परम जितेन्द्रिय श्री लक्ष्मण तथा एक पत्नीव्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए।
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मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।
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जब रावण सुलोचना से ये बातें कह रहा था, उस समय कुछ मंत्री भी उसके पास बैठे थे।
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उन लोगों ने कहाः जिनकी पत्नी को आपने बंदिनी बनाकर अशोक वाटिका में रख छोड़ा है, उनके पास आपकी बहू का जाना कहाँ तक उचित है ? यदि यह गयी तो क्या सुरक्षित वापस लौट सकेगी ?
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यह सुनकर रावण बोलाः “मंत्रियो ! लगता है तुम्हारी बुद्धि विनष्ट हो गयी है। अरे ! यह तो रावण का काम है जो दूसरे की स्त्री को अपने घर में बंदिनी बनाकर रख सकता है, राम का नहीं।”
रावण की बातें सुनकर वह राम के पास गई और उनकी प्रार्थना करने लगी। श्रीराम जी उन्हें देखकर उनके समक्ष गए और कहा – “हे देवि! आपसे मैं प्रसन्न हूँ, आप बड़ी ही पतिव्रता हैं, जिसके कारण ही आपका पति पराक्रमवान् था। आप कृपया अपना उपलक्ष्य कहें।” सुलोचना ने कहा – “राघवेंद्र, आप तो हर बात से अवगत हैं। मैं अपने पति के साथ सती होना चाहती हूँ और आपने उनका शीश देने का आग्रह कर रही हूँ।” रामचंद्र जी ने मेघनाद का शीश उन्हें सौप दिया। सुलोचना ने लक्ष्मण को कहा “भ्राता, आप यह मत समझना कि आपने मेरे पति को मारा है। उनका वध करने का पराक्रम किसी में नहीं। यह तो आपकी पत्नी के सतित्व की शक्ति है। अंतर मात्र यह है कि मेरे स्वामी ने असत्य का साथ दिया।” वानरगणों ने पूछा कि आपको यह किसने बताया कि मेघनाद का शीश हमारे पास है? सुलोचना ने कहा – “मुझे स्वामी के हाथ ने बताया।” इस बात पर वानर हँसने लगे और कहा कि ऐसे में तो यह कटा सर भी बात करेगा। सुलोचना ने प्रार्थना की कि अगर उसका पतिव्रत धर्म बना हुआ हो तो वह सर हँसने लगे। और मेघनाद का सर हँसने लगा। ऐसे दृश्य को देख सबने सुलोचना के पतिव्रत का सम्मान किया। सुलोचना ने चंदन की शैया पर अपने पति के शीश को गोद में रखकर अपनी आहुति दे दी।