रामायण की कई रोचक कथाओं का समावेश किया गया हैं उन में से एक हैं देवी अहिल्या के उद्धार की कहानी जो आज के समय से जोड़कर देखिये तब आपको भी समझ आएगा कि इतिहास में भी बलात्कारियों को युगों युगों तक सजा का भुगतान करना पड़ा हैं फिर वो देव ही क्यूँ ना हो |
माता अहिल्या जिन्हें स्वयं ब्रह्म देव ने बनाया था इनकी काया बहुत सुंदर थी इन्हें वरदान था कि इनका योवन सदा बना रहेगा | इनकी सुन्दरता के आगे स्वर्ग की अप्सराये भी कुछ नहीं थी | इन्हें पाने की सभी देवताओं की इच्छा थी | यह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी अतः ब्रह्म देव ने एक परीक्षा रखी जिसकी शर्त थी जो भी परीक्षा का विजेता होगा उसी से अहिल्या का विवाह होगा | अंत में यह परीक्षा महर्षि गौतम ने जीती और विधीपूर्वक अहिल्या से विवाह किया |
अहिल्या की सुन्दरता पर स्वयं इंद्र देव मोहित थे और एक दिन वो प्रेमवासना कामना के साथ अहिल्या से मिलने पृथ्वी लोक आये | लेकिन गौतम ऋषि के होते यह संभव नहीं था | तब इंद्र एवं चन्द्र देव ने एक युक्ति निकाली | महर्षि गौतम ब्रह्म काल में गंगा स्नान करते थे | इसी बात का लाभ उठाते हुये इंद्र और चंद्र ने अपनी मायावी विद्या का प्रयोग किया और चंद्र ने अर्धरात्रि को मुर्गे की बांग दी जिससे महर्षि गौतम भ्रमित हो गये और अर्ध रात्रि को ब्रह्म काल समझ गंगा तट स्नान के लिये निकल पड़े |
महर्षि के जाते ही इंद्र ने महर्षि गौतम का वेश धारण कर कुटिया में प्रवेश किया और चंद्र ने बाहर रहकर कुटिया की पहरेदारी की |
दूसरी तरफ जब गौतम गंगा घाट पहुँचे, तब उन्हें कुछ अलग आभास हुआ और उन्हें समय पर संदेह हुआ | तब गंगा मैया ने प्रकट होकर गौतम ऋषि को बताया कि यह इंद्र का रचा माया जाल हैं, वो अपनी गलत नियत लिये अहिल्या के साथ कु कृत्य की लालसा से पृथ्वी लोक पर आया हैं | यह सुनते ही गौतम ऋषि क्रोध में भर गये और तेजी से कुटिया की तरफ लौटे | उन्होंने चंद्र को पहरेदारी करते देखा तो उसे शाप दिया उस पर हमेशा राहू की कु दृष्टि रहेगी | और उस पर अपना कमंडल मारा | तब ही से चन्द्र पर दाग हैं |
उधर इंद्र को भी महर्षि के वापस आने का आभास हो गया और वो भागने लगा | गौतम ऋषि ने उसे भी श्राप दिया और उसे नपुंसक होने एवम अखंड भाग होने का शाप दिया | साथ ही यह भी कहा कि कभी इंद्र को सम्मान की नजरो से नहीं देखा जायेगा और ना ही उसकी पूजा होगी | और आज तक इंद्र को कभी सम्मान प्राप्त नहीं हुआ |
जब इंद्र भागने के लिये अपने मूल रूप में आया, तब अहिल्या को सत्य ज्ञात हुआ लेकिन अनहोनी हो चुकी थी जिसमे अहिल्या की अधिक गलती ना थी, उसके साथ तो बहुत बड़ा छल हुआ था लेकिन महर्षि गौतम अत्यंत क्रोधित थे और उन्होंने अहिल्या को अनंत समय के लिये एक शिला में बदल जाने का शाप दे दिया | जब महर्षि का क्रोध शांत हुआ, तब उन्हें अहसास हुआ कि इस सबमे अहिल्या की उतनी गलती नहीं थी परन्तु वे अपना शाप वापस नहीं ले सकते थे |अपने इस शाप से महर्षि गौतम भी बहुत दुखी थे तब उन्होंने अहिल्या की शिला से कहा – जिस दिन तुम्हारी शिला पर किसी दिव्य आत्मा के चरणों की धूल स्पर्श होगी, उस दिन तुम्हारी मुक्ति हो जायेगी और तुम अपने पूर्वस्वरूप में पुनः लौट आओगी | इतना कह कर दुखी गौतम ऋषि हिमालय चले गये और जनकपुरी की कुटिया में अहिल्या की शिला युगों- युगों तक अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा में कष्ट भोग रही थी |
युगों बीतने के बाद जब महर्षि विश्वामित्र राक्षसी ताड़का के वध के लिये अयोध्या से प्रभु राम और लक्ष्मण को लेकर आये तब ताड़का वध के बाद वे यज्ञ के लिये आगे बढ़ रहे थे तब प्रभु की नजर उस विरान कुटिया पर पड़ी और वे वहाँ रुक गये और उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से पूछा – हे गुरुवर ! यह कुटिया किसकी हैं जहाँ वीरानी हैं जहाँ ऐसा प्रतीत होता हैं कि कोई युगों से नहीं आया | कोई पशु पक्षी भी यहाँ दिखाई सुनाई नहीं पड़ता | आखिर क्या हैं इस जगह का रहस्य ? तब महर्षि विश्वामित्र कहते हैं – राम यह कुटिया तुम्हारे लिये ही प्रतीक्षा कर रही हैं | यहाँ बनी वह शिला तुम्हारे चरणों की धूल के लिये युगों से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं | राम पूछते हैं – कौन हैं यह शिला ? और क्यूँ मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं | महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को देवी अहिल्या के जीवन की पूरी कथा सुनाते हैं |
कथा सुनने के बाद राम अपने चरणों से शिला पर स्पर्श करते हैं और देखते ही देखते वह शिला एक सुंदर स्त्री में बदल जाती हैं और प्रभु राम का वंदन करती हैं | देवी अहिल्या राम से निवेदन करती हैं कि वो चाहती हैं उनके स्वामी महर्षि गौतम उन्हें क्षमा कर उन्हें पुनः अपने जीवन में स्थान दे | प्रभु राम अहिल्या से कहते हैं – देवी आपकी इसमें लेश मात्र भी गलती ना थी और महर्षि गौतम भी अब आपसे क्रोधित नहीं हैं अपितु वो भी दुखी हैं | अहिल्या के अपने स्वरूप में आते ही कुटिया में बहार आ जाती हैं और पुनः पंछी चहचहाने लगते हैं |
इस तरह प्रभु राम देवी अहिल्या का उद्धार करते हैं | और आगे बढ़ते हुये जनक कन्या सीता के स्वयंबर का हिस्सा बनते हैं |