पौराणिक प्रेम कथाओं में से कच और देवयानी का कथानक सर्वाधिक प्रसिद्ध है। कच देवगुरु बृहस्पति के पुत्र थे। देवताओं के अनुरोध पर दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने के लिए गए थे। देवयानी दैत्यगुरु शुक्राचार्य की बेटी थी, जो कच से प्रेम करने लगी थी।
आचार्य शुक्र तथा उनकी पुत्री देवयानी- दोनों की कच नित्य आराधना करने लगे। वे नवयुवक थे और गायन, नृत्य, संगीत आदि द्वारा देवयानी को संतुष्ट रखते थे। आचार्य कन्या देवयानी भी युवावस्था में पदार्पण कर चुकी थी। वह कच के ही समीप रहती और नृत्य गायन से उनका मनोरंजन करती हुई उनकी सेवा करती थी। देवयानी कच को प्रेम करने लगी थी।
जब कच का व्रत समाप्त हो गया और गुरु शुक्राचार्य ने उसे जाने के आज्ञा दे दी तो वह देवलोक जाने लगा तब देवयानी ने कहा, ‘महर्षि अंगिरा के पौत्र, मैं तुमसे प्रेम करती हूँ, तुम मुझे स्वीकार करो और वैदिक मंत्रों द्वारा विधिवत् मेरा पाणि ग्रहण करो।’
देवयानी की ये बातें सुनकर देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच ने कहा, ‘सुभांगी देवयानी! जैसे तुम्हारे पिता शुक्राचार्य मेरे लिए पूजनीय और माननीय हैं, उसी तरह तुम भी हो, बल्कि उनसे भी बढ़कर मेरी पूजनीया हो, क्योंकि धर्म की दृष्टि से तुम गुरुपुत्री हो, तुम मेरी पूजनीया बहन हो, अतः तुम्हें मुझसे ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।’
‘द्विजोत्तम कच! तुम मेरे गुरु के पुत्र हो, मेरे पिता के नहीं, अतः मेरे भाई नहीं लगते,’ यह सुनकर कच कहने लगे, ‘उत्तम व्रत का आचरण करने वाली सुंदरी! तुम मुझे ऐसा काम करने के लिए प्रेरित कर रही हो, जो कदापि उचित नहीं हैं। तुम मेरे लिए गुरु से भी बढ़कर श्रेष्ठ हो।’
देवयानी ने कहा, ‘कच, दैत्यों द्वारा बार-बार मारे जाने पर मैंने तुम्हें पति मानकर ही तुम्हारी रक्षा की है अर्थात् पिता द्वारा जीवनदान दिलाया है। इसीलिए मैंने धर्मानुकूल काम के लिए तुमसे प्रार्थना की है। यदि तुम मुझे ठुकरा दोगे तो यह विद्या तुम्हारे कोई काम की नहीं,’ इस प्रकार प्रेम असफल होने पर देवयानी ने शाप दे दिया।
शाप सुनकर कच बोले, ‘देवयानी, मैंने तुम्हें गुरुपुत्री समझकर ही तुम्हारे अनुरोध को टाल दिया है, तुममें कोई दोष देखकर नहीं। स्वेच्छा से मैं तुम्हारा शाप स्वीकार कर लूँगा, लेकिन बहन, मैं धर्म को नहीं छोडूँगा।’ ऐसा कहकर कच तुरंत देवलोक चले गए।