एक राजा हाथी पर सवार हो बड़ी धूमधाम के साथ चला जा रहा था। उसका हाथी ही दुष्ट था। जिस समय किसी प्रयोजनार्थ राजा हाथी से उतरा कि हाथी बिगड़ गया और राजा के ऊपर सूँड़ से प्रहार करने को दौड़ा। राजा हाथी की यह दशा देखकर जान बचाने के लिए वहाँ से भाग खड़ा हुआ, किंतु बिगड़ैल हाथी ने उसका पीछा किया। उसने राजा को एक ऐसे अँधे कुएँ में ले जाकर डाला, जिसके एक किनारे पर पीपल का वृक्ष था, जिसकी जड़े कुएँ के भीतर से निकल रही थीं, जो आधे कुएँ तक फैली थीं।
राजा के कुएँ में गिरते ही उसका पैर पीपल की जड़ों में फँस गया। अब राजा का सिर नीचे और पैर ऊपर को थे। राजा की दृष्टि जब नीचे को पड़ी, तो वह क्या देखता है कि कुएँ में बड़े-बड़े विकराल काले साँप, विशखोपरे और कछुए ऊपर को मुँह कर रहे हैं, जिन्हें देख राजा काँप गया कि यदि जड़ से मेरा पैर कदाचित् छूट गया और मैं कुएँ में गिरा तो मुझे ये दुष्ट जीव उसी समय भक्षण कर जाएँगे। जब ऊपर की ओर उसने दृष्टि डाली, तो देखा कि दो चूहे, एक काला और एक सफेद जिस जड़ में उसका पैर फँस रहा है, उसे कुतर रहे हैं। राजा ने विचारा कि मैं यदि जड़ पकड़कर किसी प्रकार ऊपर निकल भी जाऊँ तो मतवाला हाथी ठोकर लगाने को ऊपर ही खड़ा है, नीचे साँप आदि जंतु हैं और जड़ का यह हाल है। निदान राजा घोर विपत्ति में फँस गया। उस पीपल के वृक्ष पर ऊपर की तरफ से मक्खियों ने एक छत्ता लगा रखा था, जिससे एक एक बूँद शहद धीरे धीरे टपकता था और वह शहद कभी-कभी राजा के मुँह में आ गिरता था, जिसको वह ऐसी आपत्ति में होते हुए भी सब कुछ चाटने लगता। उसे इस बात का किंचित् मात्र भी ध्यान न रहा कि इस जड़ के टूटते ही मेरी क्या दशा होगी ?
मित्रों, इसका दृष्टांत यों है-यह जीवात्मारूपी राजा कर्मरूपी हाथी पर सवार है। चाहे वह इसे सुमार्ग से ले जाए, चाहे कुमार्ग से। जिस समय इस कर्मरूपी हाथी से यह उतरा है उस समय कर्मरूपी हाथी इस पर प्रहार करने दौड़ता है और इसे खदेड़कर माता के गर्भाशयरूपी अंधे कुएँ में जाकर डालता है। उस कुएँ में आयुरूपी वृक्ष की जड़ में इसका पैर फँसा रहता है और जब यह उस जड़ में उलटा लटका (गर्भाशय में प्रत्येक पुरुष का सिर नीचे और पैर ऊपर होते हैं) कुएँ में नीचे के संसार को देखता है, तो उसमें बड़े-बड़े भयंकर साँप, विषखोपरे और कछुए यानी काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, तृष्णा आदि इस आशय से मुँह फाड़े ऊपर को देख रहे हैं कि यह ऊपर से गिरे और हम इसको अपना भक्ष्य बनाएँ। यह देख जीवन-रुपी राजा अत्यंत व्याकुल होता है।
जब यह ऊपर की ओर दृष्टि डालता है तो इसी आयुरूपी जड़ को दो काले सफेद चूहे यानी सफेद चूहा दिन और काला चूहा रात, इसकी आयुरूपी जड़, जिसमें इसका पैर फँसा है, काट रहे हैं और जब यह विचारता है कि यदि इस कुएँ से मैं किसी प्रकार जड़ पकड़कर निकल जाऊँ, तो कर्मरूपी हाथी ठोकर लगाने को ऊपर खड़ा है। इस दशा में जो मक्खीरूपी विषय का शहद (रूप, रस, गंध, शब्द, स्वर्श) उसका आस्वादन करने में यह ऐसा निमग्न हो जाता है कि सारी विपत्तियों को भूल जाता है। इसे यह भी स्मरण नहीं रहता कि आयुरूपी जड़ अभी कटने वाली है, जिससे गिरकर मैं इन सर्प, कछुओं का भोजन बनूँगा इसलिए हम क्यों न ऐसा कर्म करें कि जिससे हाथी खदेड़कर हमें गर्भाशयरूपी कुएँ में न डाल पाए अर्थात् हम लोग ऐसे सत्य कर्म करें, जिससे भयानक अंधे कुओं में न जाना पड़े और मोक्ष प्राप्त करें।