भारतीय भूमि खण्ड की संरचना कुछ इस प्रकार है कि एक ओर हिमालय है दूसरी ओर समुद्र और इसकी आकृति मानवाकृति से मिलती जुलती है इस आधार पर इस भूमि खण्ड पर जिसमें वर्तमान भारत से अतिरिक्त भी बहुत से हिस्से प्राचीनकाल मे थे हमारे प्राचीन ऋषि मूनियो ने ऊर्जा संरचना को अनुरूप माप जोख करके 12 प्राचीन शिवलिगों की स्थापना की गयी थी।
यह माना गया था कि हिमालय का मानसरोवर इसके शीर्ष पर स्थित है और यहाँ से ऊर्जा का प्रवाह नीचे की ओर होता है इसलिए यहाँ शिव को विधमान होने की बात कही गयी है जो नही जानते ,उन्हें प्रतीत होता है कि ये शिवलिंग केवल आस्था से तहत पूजा हेतु स्थापित किये गये थे परन्तु ऐसा नही है ये तत्त्व एक विचित्र प्राकृतिक ऊर्जा सुत्र पर क्रिया करते है और ये ऐसे ऊर्जा केन्द्र है जिनसे समस्त भूखण्ड को अपार ब्रह्माण्डीय ऊर्जा प्राप्त होती है ये केवल प्रतीक या आस्था नही है वास्तव मे एक विचित्र प्रकार की ऊर्जा का उत्सर्जन होता है ।
यह धरती जिसे पृथ्वी कहा जाता है इस पृथ्वी शब्द का अर्थ ठोस है पृथ्वी ग्रह को तत्त्ववेताओं ने धरती, धरा या वसुन्धरा कहा है यह एक जीवित ग्रह है इसका नाभिक क्रियाशील है।
और इसी कारण इसकी सतह से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा तरंगों का उत्सर्जन होता है इन तरंगों को जब आधार से शंक्वाकार स्थित मे ऊपर निकाला जाता है तो प्रतिक्रिया स्वरूप ऊपर आकाश मे ठीक इसके विपरीत ऊर्जा आकृति बनती है और वह उस शंक्वाकार आकृति पर आपतित होती है इससे उस शंक्वाकार आकृति से शीर्ष से नये प्रकार की ऊर्जा का प्रस्फुटन होता है ।इस ऊर्जा की बौछार वहाँ निकलने लगती है और वह सम्पूर्ण वातावरण एवं वायुमंडल को प्रभावित करती है ।
यह ऊर्जा जीव जन्तु वनस्पति अन्न फल फूल आदि से लिए कल्याणकारी हे इसलिए समस्त भूमि को इकाई मानकर इन शिवलिगों को स्थापित किया गया था ये शिवलिंग इन 12 से अतिरिक्त परमाणु मे और भी है इनकी संख्या अरबों मे है परन्तु आराधना, साधना, पूजा, आदि मे इनमे से १०८ मुख्य मुख्य शिवलिगों की गणना की गयी है जो मानव शरीर के नाभिक, उप नाभिक है वे३३ करोड है उनको ही ३३ करोड देवी देवता कहते है ।
सभी पिरामिडों मे इसी सिद्धांत को अन्तर्गत इसी विशिष्ट आकृति को किसी न किसी रूप मे अपनाया गया है इससे जीवन शक्ति बढती है और इसका क्षरण कम हो जाता है यह सिद्धांत सभी प्राचीन पूजा इबादत पद्धति मे भी सक्रिय रहा है यहा तक कि सामान्यतया अशिक्षित समुदाय भी भारत मे मिट्टी की पिण्डी इसी आकृति मे बनाकर उसे देवी मानकर पूजा करते है ।
इसका यह अर्थ नही है कि जहां तहां इस प्रकार से शिवलिंग या विभिन्न मन्दिर आदि बना दिये जाये इस ऊर्जा से जीवनी शक्ति मिलती है और आयु अधिक हो जाती है। इससे मानसिक शक्ति भी कल्याणकारी रूप से प्रभावित होती है पर यह प्रकृति प्रदत्त धरती की ऊर्जा नही है इसका आबादी से पास होना उचित नही है इससे प्रजनन क्षमता कम होती है और शारीरिक संरचना मे धरती की तरंगों का अभाव हो जाता हैया कम हो जाता हैइससे अनेक प्रकार के शारीरिक दोष उत्पन्न हो जाते है।
इसलिए भारतीय तत्त्व विज्ञान मे कहा गया है कि ग्राम या आबादी को बीच कहीं घर मे अपवित्र स्थान पर दूषित स्थान पर या जो पृथ्वी को ऊर्जा चक्र के अनुरूप उचित नही है वहाँ शिवलिंग, किसी प्रकार का मन्दिर कोई मन्दिर की आकृति आदि नही बनानी चाहिए ।