शाबर मंत्र की_साधना के रहस्य,….🌹🌹

भगवान शिव ने सभी मंत्रों को किलित कर दिया पर शाबर मंत्र किलित नहीं है ! शाबर मंत्र कलियुग में अमृत स्वरूप है! शाबर मंत्र को सिद्ध करना बड़ा ही सरल है न लम्बे विधि विधान की आवश्यकता और न ही करन्यास और अंगन्यास जैसी जटिल क्रियाएँ! इतने सरल होने पर भी कई बार शाबर मंत्र का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता क्योंकि शाबर मंत्र सुप्त हो जाते है ऐसे में इन मंत्रों को एक विशेष क्रिया द्वारा जगाया जाता है!

((🌹🌹,….पोस्ट पर दिए गए विचारों से कुछ विद्वान असहमत हो सकते है, कृपया सहयोग करें, औऱ आपके पास अन्य जानकारी या नए विचार हों तो, हमारे साथ जरूर बांटें,….🌹🌹))

शाबर मन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं और शीघ्रता से परिणाम लाते हैं।सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं। इन मंत्रों के प्रवर्तक शिव भक्त गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मत्स्येंद्र नाथ को माना जाता है

शाबर मंत्रो में जो शब्द इस्तेमाल किये गए हैं वो हमारी रोज़ की भाषा में इस्तेमाल में आने वाले ही शब्द है || शाबर मन्त्र का उचारण बहुत आसान होता है और यह मन्त्र बहुत शक्तिशाली होते हैं और यह बहुत जल्दी प्रभाव देते हैं |

जिस प्रकार एक छोटे से बच्चे की हरकतों से तथा उसकी जिद से माता – पिता नाराज नहीं होते और उसकी इच्छाएं पूर्ण कर देते हैं | ऐसी ही बाल सुलभ सरलता का विश्वास शाबर मन्त्रों का जाप करने वाला साधक शाबर मन्त्रों के देवता के प्रति रखता हैं और देवता भी माता पिता की ही भांति साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं |

शाबर मंत्र की उत्पत्ति की कथा,……🌹🌹🌹🌹

द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पशुपति अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान शिव का तप किया! एक दिन भगवान शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा, दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा, मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा! अर्जुन और भगवान शिव में युद्ध शुरू हुआ, युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी!

तभी भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है! अर्जुन ने भगवान शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरूप दिखाया!

अर्जुन भगवान शिव के चरणों में गिर पड़े और पशुपति अस्त्र के लिए प्रार्थना की! शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया, उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरूप दिखाया! जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया! माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ”हे किरातों! मैं प्रसन्न हूँ, वर मांगो!” इसपर शिकारीओं ने कहा ”हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमें संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है, इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमें ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके!

माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान शिव ने शाबर मंत्रों की रचना की! यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान शिव को ”आदिनाथ” कहा जाता है और माता पार्वती को ”उदयनाथ” कहा जाता है! भगवान शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली, उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और करोड़ो शाबर मंत्रों की रचना की!

यह शाबर मंत्रों की विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी, इसलिए शाबर मंत्रों चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है! अतः यह कहना गलत ना होगा कि शाबर मंत्र नाथ सिद्धो की देन है!

शाबर मंत्रों के मुख्य पांच प्रकार है,……🌹🌹🌹🌹

🌹🌹●●प्रबल शाबर मंत्र,
इस प्रकार के शाबर मंत्र कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग होते है, इन में प्रत्यक्षीकरण नहीं होता!
केवल जिस मंशा से जप किया जाता है वह इच्छा पूर्ण हो जाती है, साधक एक याचक के रूप में देवता से याचना करता है!

🌹🌹●●बर्भर शाबर मंत्र,
प्रबल शाबर मंत्र से अधिक तीव्र माने जाते है ! बर्भर शाबर मंत्र में साधक देवता से याचना नहीं करता अपितु देवता से सौदा करता है! इस प्रकार के मंत्रों में देवता को गाली, श्राप, दुहाई और धमकी आदि देकर काम करवाया जाता है! देवता को भेंट दी जाती है और कहा जाता है कि मेरा अमुक कार्य होने पर मैं आपको इसी प्रकार भेंट दूंगा! यह मंत्र बहुत ज्यादा उग्र होते है!

🌹🌹●●बराटी शाबर मंत्र,
इस प्रकार के शाबर मंत्र में देवता को भेंट आदि ना देकर उनसे बलपूर्वक काम करवाया जाता है! यह मंत्र स्वयं सिद्ध होते है पर गुरु-मुखी होने पर ही अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते है! इस प्रकार के मंत्रों में साधक याचक नहीं होता और ना ही सौदा करता है! वह देवता को आदेश देता है कि मेरा अमुक कार्य तुरंत करो!
कुछ प्रयोगों में योगी अपने जुते पर मंत्र पढ़कर उस जुते को जोर-जोर से नीचे मारते है और मजबूर होकर देवता कार्य करता है!

🌹🌹●●अढैया शाबर मंत्र,
इस प्रकार के शाबर मंत्र बड़े ही प्रबल माने जाते है और इन मंत्रों के प्रभाव से प्रत्यक्षीकरण बहुत जल्दी होता है! प्रत्यक्षीकरण इन मन्त्रों की मुख्य विशेषता है और यह मंत्र लगभग ढ़ाई पंक्तियों के ही होते है! अधिकतर अढैया मन्त्रों में दुहाई और धमकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता पर फिर भी यह पूर्ण प्रभावी होते है!

🌹🌹●●डार शाबर मंत्र,
डार शाबर मंत्र एक साथ अनेक देवताओं का दर्शन करवाने में सक्षम है, यह दिव्य सिद्धियों को देने वाले और हमारे इष्ट देवी देवताओं का दर्शन करवाने में पूर्ण रूप से सक्षम है! गुरु अपने कुछ विशेष शिष्यों को ही इस प्रकार के मन्त्रों का ज्ञान देते है!

शाबर मंत्र का प्रयोग और प्रभाव,……🌹🌹

सिद्ध शाबर मंत्र बहुत शक्तिशाली होते हैं। किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रयोग किए गए मंत्रों को यह आसानी से काट सकते हैं। इन मंत्रों के प्रयोग द्वारा किसी भी समस्या का समाधान सरलता से किया जा सकता है। इन मंत्रों में विनियोग, व्रत, तर्पण, हवन, पूजा आदि की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

शाबर मंत्र के महत्त्वपूर्ण तथ्य,……🌹🌹🌹🌹

  • किसी भी आयु, जाति और वर्ण के पुरुष या स्त्रियां इस मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं।
  • इन मंत्रों की साधना के लिए गुरु की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण नहीं होती है।
  • षट्कर्म की साधना को करने के लिए गुरु की राय अवश्य लेनी चाहिए।
  • मंत्र के जाप के लिए लाल या सफेद आसन बिछाकर उस पर बैठना चाहिए।
  • शाबर मंत्र का जाप श्रद्धा और विश्वास के साथ ही करना चाहिए।

गुरु दीक्षा आवश्यक,……🌹🌹
शाबर मंत्र साधना में सफलता के लिए गुरुदीक्षा औऱ मंत्र का गुरु मुख से लेना आवश्यक है,

ब्रह्मचर्य का पालन करें,….🌹🌹
साधना काल में पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करें | मन में उठने वाले किसी भी प्रकार के नकारात्मक भाव को कुछ दिनों के लिए दूर ही रखे | साधना काल में ब्रह्मचर्य के पालन के साथ-साथ , सत्य और अहिंसा का पालन करें | स्वयं को विनम्र बनाये व स्वच्छता का विशेष ध्यान रखे |

मंत्र जप के साथ देव के प्रति श्रद्धा भाव,…..🌹🌹
साधना में सफलता आपके सिर्फ मंत्र जप से नहीं बल्कि देव के प्रति श्रद्धा भाव, सेवा और समर्पण से प्राप्त होती है |

जल्द ही शाबर मंत्र के कुछ सरल औऱ उपयोगी प्रयोगों की कड़ी शुरू करने जा रहा हूँ,…….🌹

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🌹🌹..🌹🌹..जय श्री महाकाल..🌹🌹..🌹🌹..

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