एक राजा अपने घोड़े को लेकर शिकार के लिए गया था। जंगल में वह बहुत आगे तक चला गया, लेकिन शिकार नहीं मिला।
वह जंगल में रास्ता भटक गया था। बहुत कोशिश के बाद भी उसे सही रास्ता नहीं मिल रहा था। भूख-प्यास की वजह से उसकी हालत खराब हो रही थी। वह आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुक गया।
पेड़ के नीचे राजा ने देखा कि पेड़ की एक शाखा से पानी की बूंदें टपक रही हैं। उसने वहां पत्तों एक छोटा सा दोना बनाया और उस दोने में पानी की बूंदें इकट्ठी करने लगा। कुछ देर में जब दोने में थोड़ा पानी इकट्ठा हो गया तो वह उसे पीने लगा, लेकिन तभी एक तोते ने झपट्टा मारकर दोना गिरा दिया।
राजा ने सोचा कि शायद तोते को भी प्यास लगी होगी, इसीलिए उसने पानी पीने के लिए झपट्टा मार दिया होगा। राजा ने फिर दोना उठाया और कुछ ही देर में फिर से थोड़ा और पानी दोने में भर लिया। दूसरी बार फिर से राजा जैसे ही पानी पीने लगा तो तोते ने फिर से झपट्टा मार दिया और राजा का पानी फिर से नीचे गिर गया।
इस बार राजा को गुस्सा आ गया। उसने घोड़े का चाबुक उठाया और तोते पर प्रहार कर दिया। एक ही मार में तोता मर गया।
राजा ने सोचा कि एक-एक बूंद पानी इकट्ठा करने से अच्छा ये है कि मैं पेड़ पर उस जगह पहुंच जाऊं, जहां से ये पानी टपक रहा है। इस तरह कम समय में प्यास बुझाने के लिए पानी मिल जाएगा।
राजा पेड़ पर चढ़ गया और उस शाखा के पास पहुंचा, जहां से पानी टपक रहा था। वहां उसने देखा कि एक सांप वहां सोया हुआ है और उसके मुंह से ही लार बूंदों के रूप में टपक रही है। ये देखकर उसे समझ आ गया कि तोता उसे पानी क्यों पीने नहीं दे रहा था।
राजा को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। तोता मर चुका था।
सीख- इस कथा की सीख यह है कि हमें कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए। वरना बाद में पछताना पड़ सकता है।