शून्य ही पूर्ण हैं


ओर पूर्ण ही शून्य हैंl
शून्य सें अधिक पूर्ण इस जगत में कुछ हैं ही नहीं
ओर पूर्णता ओर शून्यता की पराकाष्ठा को सिद्ध करता सा हैं
नाथ शब्द
क्यों की नाथ शब्द के आगे कोई शेष ही नहीं रह जाता हैं
पूरा ब्रम्हांड नाथ की सत्ता हैं !
अतः नाथ कहता सब जुग तात्या !
नाथ शब्द क़ा रहस्य देखें ग अब
न👉🏻अर्थात….शून्य(0)
आ👉🏻अर्थात…..आकार
थ👉🏻अर्थात……थीर
अतः शून्य आकर मे थीर
शून्यकार में स्थिर हैं वह नाथ हैं!
इस र जगत में सब का अंत अटल हैं !

अंत किसी का नहीं हैं तो वह हैं केवल नाथ अर्थात नही ना अंत शून्य क़ा कभी अंत नही होता हैं शून्य सें सर्जन ओर फिर शून्य सें ही अनंत हों जाता हैं वह हैं नाथ
😊👉🏻 0
मूल..👉🏻 शून्य
परम👉🏻शून्य
पूर्ण👉🏻शून्य
अलख👉🏻शून्य
अवगत👉🏻शून्य
शिव👉🏻शून्य
अनंत 👉🏻शून्य
निरंजन👉🏻शून्य
निराकार👉🏻शून्य
निराधार👉🏻शून्य
नीराल्म्ब👉🏻शून्य
निर्गुण शिव शून्य, सिर्गुण गोरख पूर्ण!
निर्गुण सें सिर्गुण
और सिर्गुण सें निर्गुण

निर्गुण शिव गोरक्ष हुआ
किया योग प्रकाश!
कर्मी जीव को भान दिया दे भक्ति विश्वास!
दे भक्ति विश्वास थ आप मे आप लखाया !
दूजा देव निवार भरम क़ा कोट ढहाया !
सागर संग ले आठ रम सात भोंमक़ा वास!
निर्गुण शिव गोरक्ष भया किंना योग प्रकाश!
शिवगोरक्ष तेरी लीला अपारा
अतः 👉🏻शिव निर्गुण हैं तो गोरख सिर्गुण हैं !
शिव अवगुण रहित हैं तो गोरख सर्वगुण संपन्न
शिव शून्य ही गोरख पूर्ण हैं!
अतः शून्य सें विराठ कुछ भी पूर्ण हैं ही नही
और पूर्ण सें सूक्ष्म शून्य कुछ नही !

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