चलो आज मंदिरों और महलों की बात नहीं करेंगे, आज हम बात करेंगे अपने यहां के कुओं की, अभी सोच रहे होंगे की आखिर कुआं में क्या खास होगा? तो आप खुद ही देख लीजिए।

14वीं शताब्दी में भी आधुनिक उपकरणों के अभाव में एक कुएं के अंदर उभरी हर नक्काशी हमसे पूछती है की क्या हम आज ऐसे कुएं बना सकते हैं ?

जिस देश के कुएं इतने सुंदर हो इतने भव्य हो उस देश में भला किस चीज की कमी हो सकती थी। केवल आपस में फूट डलवा कर जात-पात ऊंच-नीच का भेद बताकर हमें और हमारी b

अडालज वाव (कुँआ)

अडालज की बावड़ी: एक सीढ़ीदार कुँआ (बावड़ी) है जो गुजरात के अडालज नामक गाँव में है। दूर-दराज से बड़ी संख्या में लोग इस कुएं को देखने आते रहते हैं। वास्तव में यह एक बड़े भवन के रूप में निर्मित है। भारत में इस तरह के कई सीड़ीनुमा कूप हैं

अडालज गाँव गांधीनगर जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और गांधीनगर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर है। अहमदाबाद से इसकी दूरी 18 किमी है। यह छोटा सा गाँव प्राचीन काल में ‘दांडई देश’ नाम से जाना जाता था। यह पहली मंज़िल पर लगे संमरमर के पत्थर पर संस्कृत में लिखे आलेख से मालूम होता है कि इसे 1499 में रानी रुदाबाई ने अपने पति की याद में बनवाया था। वह राजा वीरसींह की पत्नी थीं।

यह वाव पाँच मंज़िला है और अष्टभुजाकार बना हुआ है। वास्तुकला का नायाब नमूना यह ढाँचा 16 स्तंभों पर खड़ा है। सूरज की रोशनी सीधा दीवारों पर सिर्फ़ थोड़े समय के लिए ही पड़ती है इसीलिए बाहर से भीतर का तापमान 6 डिग्री कम रहता है।

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