शाहिद बाबा जित्तो की अमर_गाथा :

झिड़ी का यह मेला एक किसान शहीद बाबा जित्तो की याद में हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा से 3 दिन पूर्व शुरू हो जाता है और पूर्णिमा के तीन दिन बाद तक चलता रहता है। इस स्थान पर सबसे अधिक जनसमूह #पूर्णमासी के दिन एकत्र होता है और हजारों श्रद्धालु दिन-रात वहां जमा होकर पूजा अर्चना कर मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना कर बाबा जित्तों की स्मृति में श्रद्धा के फूल अर्पित करते हैं।

बाबा_जित्तो का जीवन एक #प्रेरणाप्रद दास्तान है, जिसके कई पहलु मानवीय जीवन की उस महानता को प्रदर्शित करते हैं कि इंसान भगवान की प्रार्थना से बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है। #अन्याय के सामने कभी किसी का सिर नहीं झुकना चाहिए। अन्याय का फल बुरा होता है। #बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए।

कहते हैं कि कोई साढ़े छः सो वर्ष पहले रियासी तहसील के गांव अघार में एक गरीब #ब्रह्मण रूप चंद रहता था। उसके यहां बेटा पैदा हुआ जिसका नाम #जित्तमल रखा गया। वह होनहार बच्चा चंचल तो बचपन से ही था, साथ में #धार्मिक कार्यो में भी रुचि लेने लगा था। जितमल #मातावैष्णोदेवी के परम भक्त भी थे ! गांव वाले उसे मुनि कहने लगे।

जित्तमल जब बड़ा हुआ तो उसका #विवाह माया देवी से हुआ। माया देवी व मुनि दोनों ही घर में बजुर्गो की सेवा करने लगे, पर उनके देहांत पर वे परेशान हो गए, जिस पर उन्होंने माता वैष्णो देवी साधना व भक्ति प्रारंभ कर दी।

माता वैष्णो भक्त बाबा जित्तो कटरा के समीप अगार कोट के रहने वाले थे। #अगार से रोजाना मां वैष्णो के भवन में जाकर माथा टेकते थे। कहते हैं कि माता वैष्णो देवी की भक्ति के #चोबीस_वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उनकी भक्ती से खुश होकर मां ने उन्हें #वरदान दिया कि वह उनके घर में जन्म लेकर पांच वर्षों तक साथ रहेंगे। इस बीच बाबा जित्तो के घर में कन्या ने जन्म लिया लेकिन लड़की के जन्म के साथ ही उसकी पत्नी माया का निधन हो गया ! मुनि जेतमल बच्ची का पालन पोषण करने लगे। उन्होंने बच्ची का नाम #बुआ रखा लेकिन जब बुआ बड़ी हुई तो #बीमार हो गई, इसलिए वह परेशान हो गए। स्थानीय वैद्य उपचार करने में असफल हो गए, वहीं किसी कारण वश बाबा जित्तो अपनी चाची जोजां से परेशान होकर घर छोड़ बेटी बुआ कौड़ी को लेकर तहसील जम्मू के गांव #कानाचक्क के इलाके में #पिंजौड़ क्षेत्र में अपने एक #दोस्त रुलो लुहार के यहां चले आए।

वहां जित्तमल ने जगह तलाश करके #खेतीबाड़ी का काम शुरू करना चाहा, उन्होंने अपने दोस्त रुलो लुहार से खेती के लिए जमीन दिलाने की बात की। वह जगह एक #जागीरदार बीर सिंह मेहता की जागीर में आती थी। उसने उस समय के राजा अजायब देव के बजीर बीर सिंह मेहता ने #बंजर जमीन खेतीबाड़ी के लिए जमीन इस शर्त के अंतर्गत दी जिस में यह कहा गया था कि जित्तमल यानी जित्तो जागीरदार को अपनी खेती की पैदावार का एक #चौथाई हिस्सा दिया करेगा।

बाबा ने वहां से #जंगल साफ कर कनक बीजी। बाबा जित्तो की मेहनत रंग लाई। परंतु जब जित्तमल के कड़े परिश्रम के बाद उस जमीन में काफी अच्छी #फसल पैदा हुई तो वह जागीरदार मेहता बीर सिंह बेईमान हो गया और अनाज के ढेर देखकर चौथाई हिस्से के बजाय पैदावार का #आधा हिस्सा मांगने लगा, लेकिन जेतमल निर्धारित शर्त से अधिक अनाज देने को तैयार नहीं हुआ इस पर #जागीरदार ने आग बबूला होकर अपने #कारिंदों को वह अनाज उठा लेने का आदेश दिया इसको लेकर बाबा जित्तो और बीर सिंह मेहता के बीच विवाद हो गया। मेहता के आदमियों ने बाबा जित्तो के साथ धक्का-मुक्की कर उन्हें चोटिल कर दिया।

अपनी मेहनत की कमाई पर बीर सिंह मेहता की बुरी नजर देख बाबा जित्तो ने बीर सिंह मेहता से कहा कि वह इस कनक को मेहता को रूखी नहीं खाने देंगे।

जित्तमल ने इतना कहा

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अनाज को लूटने आए जागीरदार के कारिंदों के सामने बाबा ने कनक के ढेर पर बैठ कर #कटार अपने सीने में घोंप दी। जित्तमल ने अन्याय के खिलाफ अपनी जान कुर्बान की, #अनाज खून से रंग गया तथा जागीरदार बीरसिंह मेहता यह घटना देखकर ढंग रह गया।

कहते हैं उसी समय अचानक तूफान व वर्षा हुई जिससे वह अनाज बिखर गया और सारी कनक खेतों, नालों में बाबा के खून के साथ कई जगह पहुंच गई। जिस-जिस ने भी उस कनक के दाने से उगे गेहूं को खाया, उस परिवार के लोग आज भी बाबा जित्तो के देव स्थान में माथा टेकने आते हैं।

तथा जित्तमल की बेटी (बुआ दाती) ने पिता की चिता को अग्न दी और खुद भी उसमें ही भस्म हो गई। तबसे जितमल बाबा जित्तो सती बुआ दाती कहलाने लगे !

तब से हर साल शहीद बाबा जित्तो की याद में झिड़ी का मेला लगता है। कई परिवार वहां पहुंचकर पूजा करते हैं और समारोहों में भाग लेते हैं। अन्य लाखों लोग वहां अपनी मनौतियों के लिए पहुंचते हैं।

झिड़ी के मेले में आने वाले अनेक श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए भी आते हैं और चारों तरफ चहल पहल हो जाती है। झिड़ी के इलाके में बाबा जित्तो के कई श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की याद में छोटी छोटी समाधियां बनवाई हैं। इस क्षेत्र को बाबे दा झाड़ कहा जाता है।

।। जय बावा जितो दी ।।
।। जय बुआ दाती दी ।।

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