कैलाश_मंदिर

सन 1682 में उस मुग़ल शासक ने 1000 मजदूरों को इकट्ठा किया और इस मंदिर को तोड़ने का काम दिया,

मजदूरों ने 1 साल तक इसे तोड़ा,
1 साल लगातार तोड़ने के बाद वो सब इसकी कुछ मूर्तियाँ ही तोड़ सके,हार कर उस मुग़ल शासक ने उन्हें वापस बुला लिया,

वो शासक था औरंगजेब, जिसकी मूर्ख सेना ये समझ बैठी थी कि ये कोई ईंट और मिट्टी से बना साधारण मंदिर है..
लेकिन उन्हें कहाँ पता था कि ये मंदिर हमारे पूर्वजों ने धरती की सबसे कठोर चट्टान को चीरकर बनाया है.

ये वही पत्थर है जो करोड़ों साल पहले धरती के गर्भ से लावे के रूप में निकला था और बाद में ठंडा होकर जमने से, इसने पत्थर का रूप लिया

कैलास मंदिर को U आकार में उपर से नीचे काटा गया है जिसे पीछे की तरफ से 50 मीटर गहरा खोदा गया है. पर आप सोचिये इतनी कठोर और मजबूत चट्टान को किस चीज़ से काटा गया होगा?..
हथौड़े और छेनी से??

आपको मंदिर की दीवारों पर छेनी के निशान दिख जायेंगे पर वहाँ के आध्यात्मिक गुरुओं का कहना है कि ये छेनी के निशान बाद के हैं,..
जब पूरा मंदिर बना दिया गया ये बस किनारों को Smooth करने के लिए उपयोग की गयीं थी. इतनी कठोर बेसाल्ट चट्टान को खोद कर उसमे से इस मंदिर को बना देना कहाँ तक संभव है???

कुछ खोजकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार की जटिल संरचना का आधुनिक तकनीक की मदद से निर्माण करना आज भी असंभव है.

क्या वो लोग जिन्होंने इस मंदिर को बनाया आज से भी ज्यादा आधुनिक थे?..
ये एक जायज सवाल है

यहाँ कुछ वैज्ञानिक आँकड़ों पर बात कर लेते हैं,..
पुरातात्विदों का कहना है कि इस मंदिर को बनाने के लिए 400,000 टन पत्थर को काट कर हटाया गया होगा और ऐसा करने में उन्हें 18 साल का समय लगा होगा .

तो आइये एक सरल गणित की कैलकुलेशन करते हैं

माना की इस काम को करने के लिए वहाँ काम कर रहे लोग 12 घंटे प्रतिदिन एक मशीन की तरह कार्य कर रहे होंगे जिसमें उन्हें कोई ब्रेक या रेस्ट नहीं मिलता होगा वो पूर्ण रूप से मशीन बन गये होंगे .

तो अगर 400,000 टन पत्थर को 18 साल में हटाना है तो उन्हें हर साल 22,222 टन पत्थर हटाना होगा , जिसका मतलब हुआ 60 टन हर दिन और 5 टन हर घंटे .

ये समय तो हुआ मात्र पत्थर को काट कर अलग करने का…
उस समय का क्या जो इस मंदिर की डिजाईन, नक्काशी और इसमें बनाई गयीं सैंकड़ों मूर्तियों में लगा होगा.

एक प्रश्न जो और है वो ये है कि जो पत्थर काट कर बाहर निकाला गया वो कहाँ गया?? उसका इस मंदिर के आसपास कोई ढेर नहीं मिलता..
ना ही उस पत्थर का इस्तेमाल किसी दूसरे मंदिर को बनाने या अन्य किसी संरचना में किया गया,..
आखिर वो गया तो गया कहाँ??

क्या आप को अभी भी लगता है कि ये कारनामा आज से हजारों वर्ष पहले मात्र छेनी और हथौड़े की मदद से अंजाम दिया गया होगा.

राष्ट्रकूट राजाओं ने वास्तुकला को चरम पर लाकर रख दिया, जैसा कि बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम(756 – 773) ने करवाया था.

यह मंदिर उस भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है जिसका मुकाबला पूरी दुनिया में आज भी कोई नहीं कर सकता.

ये उस मुग़ल शासक की बर्बरता और इस मंदिर के विरले कारीगरों की कुशलता दोनों को साथ में लिए आज भी खड़ा है और हमारे पूर्वजों के कौशल और पुरुषार्थ के सबूत देते हुए आधुनिक मानव को उसकी औकात दिखाते हुए कह रहा है कि दम है तो मुझे फिर से बनाकर दिखाओ.
●●●●●●●●●●●●●●●

ये औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में भगवान शिव का मंदिर है…
जो एक पहाड़ को काटकर बनाया गया है और इसको बनाने में 200 साल लगे हैं।

अच्छे से अच्छा धरोहर हमारे देश मे हैं कभी इनपर ध्यान दीजिए।

औरंगाबाद का कैलाश शिव मंदिर:

हम बात कर रहे हैं औरंगाबाद में स्थित भगवान शिव के इस मंदिर की.
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान शिव के इस मंदिर के रहस्य के बारें में आज भी मात्र 10 से 15 प्रतिशत हिन्दू ही जानते हैं.
लेकिन औरंगाबाद स्थित कैलाश मंदिर के बारें में बोला जाता है कि इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि इसमें ईंट और पत्थरों का इस्तेमाल नहीं हुआ है.
एक पहाड़ी को इस तरह से काटा गया है कि आज एक पहाड़ी ही मंदिर है.
इस मंदिर को ऊपर से नीचे बनाया गया है.
जबकि आज इमारत हम नीचे से ऊपर बनाते हैं.

आज तक विज्ञान भी कैलाश मंदिर की इस सच्चाई का पता नहीं लगा पाया है कि किस तरह से और किस तरह की मशीनों से इस शिव मंदिर का निर्माण किया गया होगा.

भारत तो दूर की बात है अमेरिका, रूस के वैज्ञानिक भी ऐसा बोलते हैं कि इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे मंदिर स्वर्ग से बना-बनाया ही उतारा गया हैं.

वेदों में बौमास्त्र नामक एक अस्त्र लिखा गया गया है जो शायद इस तरह के निर्माण को कर सकता था.

इस मंदिर के निर्माण में 40 हजार टन भारी पत्थर का निर्माण किया गया है तब जाकर 90 फीट ऊँचा मंदिर बना है
‼️जय सत्य सनातन धर्म की‼️

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *