गुरु,आचार्य,पुरोहित,पंडित और पुजारी में क्या अन्तर है..??

अक्सर लोग पुजारी को पंडितजी या पुरोहित को आचार्य भी कह देते हैं और सुनने वाले भी उन्हें सही ज्ञान नहीं दे पाता है, यह विशेष पदों के नाम हैं जिनका किसी जाति विशेष से कोई संबंध नहीं…आओ हम जानते हैं कि उक्त शब्दों का सही अर्थ क्या है ताकि आगे से हम किसी पुजारी को पंडित न कहें..!!

गुरु:- गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश, अर्थात जो व्यक्ति आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वह गुरु होता है,,,गुरु का अर्थ अंधकार का नाश करने वालाm अध्यात्मशास्त्र अथवा धार्मिक विषयों पर प्रवचन देने वाले व्यक्तियों में और गुरु में बहुत अंतर होता है…गुरु आत्म विकास और परमात्मा की बात करता है, प्रत्येक गुरु संत होते ही हैं; परंतु प्रत्येक संत का गुरु होना आवश्यक नहीं है…केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता होती है, गुरु का अर्थ ब्रह्म ज्ञान का मार्गदर्शक..!!

आचार्य:- आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो, आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो…वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे भी आचार्य कहा जाता था, आजकल आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को कहा जाता है..!!

पुरोहित:- पुरोहित दो शब्दों से बना है:- पर तथा हित, अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे…प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी, हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था…यह पुरोहित सभी तरह के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है, प्रचीनकाल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे…अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे, जो धर्म-कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे..!!

पुजारी:- पूजा और पाठ से संबंधित इस शब्द का अर्थ स्वत: ही प्रकाट होता है, अर्थात जो मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी…किसी देवी-देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है..!!

पंडित:- का अर्थ होता है विद्वता, किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने को ही पांडित्य कहते हैं…पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दश या कुशल, इसे विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं, किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है…प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था…इस पंडित को ही पाण्डेय, पाण्डे, पण्ड्या कहते हैं, आजकल यह नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है…कश्मीर के ब्राह्मणों को तो कश्मीरी पंडितों के नाम से ही जाना जाता है, पंडित की पत्नी को देशी भाषा में पंडिताइन कहने का चलन है..!!

ब्राह्मण:- ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है, जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है…जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है…जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है, पंडित तो किसी विषय के विशेषज्ञ को कहते हैं और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है..!!

इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है, जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता, वह ब्राह्मण नहीं…स्मृतिपुराणों में ब्राह्मण के ८ भेदों का वर्णन मिलता है- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि…८ प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं..!!

इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण त्रिशुक्ल कहलाते हैं, ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं..!!!

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