गंगा का पूजन व गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है और यश व सम्मान में वृद्धि होती है।
जम्मू कश्मीर : वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को श्रीगंगा जयंती मनाई जाती है। इस दिन मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थीं, इसलिए इस दिन को श्रीगंगा सप्तमी या श्रीगंगा जयंती के रूप में जाना जाता है।वैशाख मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि 7 मई शनिवार को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से शुरू होगी, जो अगले दिन 8 मई को शाम 5:00 बजे समाप्त होगी। सूर्योदय व्यापिनी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि 08 मई रविवार को होगी,इसलिए इस वर्ष श्रीगंगा जयंती सन् 2022 ई. 8 मई रविवार को मनाई जाएगी। श्रीगंगा जयंती के विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के प्रधान महंत रोहित शास्त्री ने बताया श्रीगंगा जयंती के दिन जो भक्तगण माँ गंगा नदी तक नहीं पहुँच सकते,घर के पानी में गंगा जल डाल कर स्नान करें अथवा घर के आस पास के किसी तालाब,नदी या जलाशय में माँ गंगा का ध्यान करते हुये श्रीगंगा जयंती का पूजन संपन्न कर सकते है। श्रीगंगा जयंती के दिन स्नान,तर्पण करने से मनुष्य के शारीरिक,मानसिक और भौतिक पाप नष्ट होते है,श्रीगंगा जयंती के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है, मां गंगा का पूजन व गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है और यश व सम्मान में वृद्धि होती है इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है।
धर्मग्रंथों के अनुसार ऋषि भागीरथ के पूर्वजों की अस्तियों को विसर्जित करने के लिए उन्हें बहते हुए निर्मल जल की आवश्यकता थी। जिसके लिए उन्होंने माँ गंगा की कड़ी तपस्या की जिससे माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हो सके। श्रीगंगा जी ने प्रसन्न होकर धरती पर अवतरित होने की बात मान ली, लेकिन उनका वेग इतनी तीव्र था कि धरती पर आने से प्रलय आ सकता था। तब भगवान शिव ने वैशाख शुक्ल सप्तमी को मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया, जिससे उनका वेग कम हो गया। तब से इस दिन को श्रीगंगा सप्तमी या श्रीगंगा जयंती के रूप में मनाते हैं। और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘श्रीगंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस वर्ष श्रीगंगा दशहरा 09 जून गुरुवार को होगा।
श्रीगंगा जयंती के दिन जो भी व्यक्ति पानी में श्रीगंगा जल मिलाकर गंगा मंत्र का दस बार जाप करते हुए स्नान करता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल को पाता है।
गंगा मंत्र: ॐ नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा॥
गंगा एवं अन्य नदियों में पूजन के उपरांत जितना भी चढ़ावा फूल, नारियल, पन्निया और अन्य सामग्री होती है, सभी को नदी में ही प्रवाहित कर दिया जाता है, इससे गंगा एवं अन्य नदियों मैली होती जा रही है। नदियों की स्वच्छता का भी ध्यान रखें।
महंत रोहित शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) अध्यक्ष श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट (पंजीकृत) संपर्कसूत्र :-9858293195,7006711011,9796293195