मकर संक्रांति जगत पिता सूर्य की उपासना का पर्व है. गोरखपुर में इस पर्व को सामाजिक समरसता के रूप में मनाने की परम्परा है. सदियों से चली आ रही इस परम्परा के मुताबिक आज भी देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर पहुंचते हैं.
ये श्रद्धालु शिवावतारी गुरु गोरखनाथ को अपनी आस्था की खिचड़ी चढ़ाते हैं. शुरुआत गोरक्षपीठाधीश्वर और योगी आदित्यनाथ ब्रह्ममुहूर्त में श्रीनाथ जी की पूजा और खिचड़ी चढ़ाने से करते हैं.
मकर संक्रांति पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने के पीछे गुरु गोरखनाथ की चमत्कारिक कथा है. यह कथा, कांगड़ा के ज्वाला देवी मंदिर से भी जुड़ी है. मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ का इंतजार आज भी वहां हो रहा है, जहां के लिए वह खप्पर भरके खिचड़ी ले जाने यहां आए थे. लेकिन आज तक न तो गुरु गोरखनाथ का खप्पर भरा और न गुरु गोरखनाथ वापस कांगड़ा लौट सके.
मान्यता है कि त्रेता युग में भ्रमण करते हुए गुरु गोरखनाथ माता ज्वाला के स्थान पर पहुंचे. गोरखनाथ को आया देख माता स्वयं प्रकट हुईं. उन्होंने गोरखनाथ का स्वागत किया और भोजन के लिए आमंत्रण दिया. देवी स्थान पर वामाचार विधि से पूजन-अर्चन होता था. तामसी भोजन पकता था. गुरु गोरखनाथ वह भोजन ग्रहण नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने कहा कि वह तो सिर्फ खिचड़ी खाते हैं. वह भी भिक्षाटन से प्राप्त अन्न से पकी हुई. इस पर ज्वाला देवी ने गुरु गोरखनाथ से कहा कि ठीक है आप खिचड़ी मांग कर लाएं. तब तक वह पानी गरम कर रही हैं. गुरु गोरखनाथ भिक्षाटन करते हुए कोशल राज के इस क्षेत्र में आ गए. उस समय यहां घना जंगल था.
आज जहां गुरु गोरखनाथ का मंदिर है वह स्थान तब बेहद शांत, सुंदर और मनोरम था. गुरु गोरखनाथ इस स्थान से प्रभावित होकर यहीं ध्यान लगाकर बैठ गए.
हिमालय की तलहटी का यह क्षेत्र बाद में गुरु गोरखनाथ के नाम से गोरखपुर कहलाया. मान्यता है कि ध्यान में बैठे गुरु के खप्पर में खिचड़ी चढ़ाने लोग जुटने लगे लेकिन कोई भी उसे भर नहीं सका. गुरु गोरखनाथ भी कांगड़ा लौट न सके. माता के तप से ज्वाला देवी मंदिर में आज भी अदहन खौल रहा है. यहां गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की मान्यता देश-विदेश तक फैली.
गोरखपुर में मकर संक्रांति पर भारी भीड़ जुटने लगती है, मकर संक्रांति से शुरू होकर एक महीने तक मेला लगता है.
नेपाल राजवंश की चढ़ती है खिचड़ी… गोरखनाथ मंदिर में नेपाल राजवंश की खिचड़ी हर साल चढ़ती है. मान्यता है कि नेपाल राजवंश की स्थापना गुरु गोरखनाथ की कृपा से हुई थी. उन्हीं की कृपा से नेपाल राजवंश के संस्थापक पृथ्वी नारायण शाह ने बाइसी और चौबीस नाम से बंटी 46 रियासतों को एकजुट कर एकीकृत नेपाल की स्थापना की थी. नेपाल शाही परिवार के मुकुट और मुद्रा पर आज भी गुरु गोरखनाथ का नाम अंकित है.
आज भी मंदिर के भंडारे में हजारों लोग शामिल होते है.
मकर संक्रांति पर गोरखनाथ मंदिर में विशाल भंडारा लगता है. भंडारे की सारी व्यवस्था गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की देखरेख में होती है. भंडारे में हजारों की संख्या में शामिल होकर लोग खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।