काली शब्द का अर्थ है काल की पत्नी काल शिव जी का नाम है अतः शिव पत्नी को ही काली की संज्ञा से अभिहित किया गया है aइन्हें आधा काली जी कहते हैं तंत्र शास्त्रों में आधा भगवती के दस भेद कहे गए हैं काली काली, तारा,षोडशी, भुनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती,बगला,मातंगी,कमलात्मिका, इन्हें सम्मिलित रूप में दस महाविद्या के नाम से जाना जाता है। इनमें भगवती काली मुख्य है भगवती काली के रूप भेद अच्छे हैं सभी देवियों जोगनिया आदिकाल भगवती काली की ही प्रतिरूपा है जिनके आठ भेद मुख्य माने जाते हैं चिंतामणि काली ,स्पर्शमणि काली,सन्ततिप्रदा काली, सिद्धि काली दक्षिणा काली कामकला काली हंसिका ली एवं गुहा काली काली कर्म पिक्चर में भगवती काली के इन आठ भेदों मंत्र दिए जाते हैंs इनके अतिरिक्त भद्रकाली एवं श्मशान काली महाकाली यह तीन भेद भी विशेष प्रसिद्ध है तथा इनकी उपासना भी विशेष रूप से की जाती है।
दस महाविद्याओं के मंत्र जप ध्यान पूजन तथा प्रयोग की विधियां कवच स्तोत्र सहस्त्रनाम आदि प्रथक प्रथक हैं अब तो है इन सभी देवियों के संबंध में अलग-अलग साधना संपन्न होती है भगवती काली के स्वरूपों में दक्षिणा काली मुख्य है इन्हें दक्षिण कालिका तथा दक्षिणा कालिका आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है काली के उपासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय भी भगवती दक्षिणा काली ही है गुहा काली भद्रकाली श्मशान काली तथा महाकाली अचार्य स्वरूप भी प्रकार अंतर से भगवती दक्षिणा काली के ही हैं तथा इनके मंत्रों का जाप न्यास पूजन ध्यान आदि भी प्राय भगवती दक्षिणा काली की भांति ही किया जाता है hअतः इन चारो के मंत्र तथा ध्यानादि में के भेद को भी समान रूप से ही किया जाता है।
भगवती काली को अनादिरूपा आधाविद्या ब्रह्म स्वरूपिणी तथा कैवल्यदात्री माना गया है अन्य महाविद्या मोक्ष दात्री कही गई है दस महाविद्याओं में भगवती षोडशी जिन्हें त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है भुनेश्वरी तथा छिन्नमस्ता रजोगुण प्रधाना एवं सत्वगुणात्मिका है अतः ये गौण रूप से मुक्ति दात्री हैं। धूमावती भैरवी बगला मातंगी तथा कमला यह सब देवियां तमोगुण प्रधाना है अत इनकी उपासना मुख्यतः षट् कर्मों में ही की जाती है शास्त्रों के अनुसार पांचों तत्व तक सत्वगुणात्मिका भगवती तारा की स्थिति है तथा सब के अंत में भगवती काली स्थित है oअर्थात भगवती काली आद्यशक्ति चित्तशक्ति के रूप में विद्यमान रहती हैं अस्तु वह अनित्य अनादि अनंत एवं सब की स्वामिनी है और भद्रकाली के रूप में इन्हीं की स्थिति की जाती है जैसा कि बारंबार कहा गया है कि भगवती काली अजन्मा तथा निराकार है तथा भावुक भक्तजन तथा भावना तथा देवी के गुण कार्यों के अनुरूप उनके काल्पनिक साकार रूप की उपासना करते हैं भगवती क्योंकि अपने भक्तों पर ने रखी है तथा उनका कल्याण करती है तथा उन्हें युक्ति मुक्ति प्रदान करती है अतः उनके ह्रदयाकाश में अभिलषित रूप में सरकार हो जाती है इस प्रकार निराकार होते हुए भी वे साकार हैं अदृश्य होते हुए भी दृश्यमान है ।
दक्षिणा काली भगवती का नाम दक्षिणा काली क्यों है अथवा दक्षिणा काली शब्द का भावार्थ क्या है इस संबंध में शास्त्रों में विभिन्न मत प्रस्तुत किए हुए हैं जो संक्षिप्त में इस प्रकार हैं निर्वाण तंत्र के अनुसार दक्षिण दिशा में रहने वाला सूर्य पुत्र यम काली का नाम सुनते ही भयभीत होकर दूर भाग जाता हैk अर्थात वह काली उपास को को नर्क में नहीं ले जा सकता इसी कारण भगवती को दक्षिणा काली कहते हैं जिस प्रकार किसी भी धार्मिक कर्म की समाप्ति पर दक्षिणा फल की सिद्धि देने वाली होती है उसी प्रकार भगवती काली भी सभी कर्म फलों की सिद्धि प्रदान करती है इसी कारण इनका नाम दक्षिणा है भर देने में अत्यंत चतुर है इसलिए इन्हे दक्षिणा कहा जाता है सर्वप्रथम दक्षिणामूर्ति भैरव ने इनकी आराधना की थी अतः भगवती को दक्षिणा काली कहते हैं पुरुष को दक्षिण तथा शक्ति को वामा कहते हैं वही वामा दक्षिण पर विजय प्राप्त करके महामोक्ष प्रदायिनी बनी इसी कारण तीनों लोकों में इन्हे दक्षिणा कहा गया है।
भगवती काली के स्वरूप आदि से संबंधित शब्दों का भावार्थ जाने बिना अर्थ का अनर्थ हो जाता है अतः यहां कुछ प्रमुख शब्दों के भावार्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं वर्ण महानिर्वाण तंत्र के अनुसार जिस प्रकार श्वेत पीत आदि आठवीं सभी काले रंग में समाहित हो जाते हैंv उसी प्रकार सब जीवो का लय काली में होता है कालशक्ति निर्गुणा निराकार भगवती काली का वर्ण भी काल ही निरूपित किया गया है
कुछ तंत्रों में भगवती काली का वर्ण काला तथा लाल दोनों बताए गए हैं परंतु साथ में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि भगवती दक्षिणा काली का रंग काला तथा भगवती त्रिपुर सुंदरी अर्थात तारा का रंग लाल है भगवती के दक्षिण काली अथवा भद्रकाली महाकाली शमशान काली तथा महाकाली आदि रूपों के उपासक भक्तों को देवी के श्याम वर्ण अर्थात काले रंग के शरीर की ही भावना करनी चाहिए sनिवास -भगवती काली को शमशान वासिनी कहा गया है शमशान का अलौकिक अर्थ है जहां मर्द प्राणियों के शरीर जलाए जाते हो परंतु देवी के निवास स्थल के संबंध में श्मशान शब्द का अर्थ लागू नहीं होता है पंचमहाभूत ओं का चिद ब्रह्म मिले होता है भगवती आध्या काली चिद् ब्रह्मस्वरूपा है जिस स्थान पर पंचमहाभूतो का लय हो गई शमशान है और वही भगवती का निवास हैi यह समझना चाहिए।
सांसारिक विषयो काम क्रोध राग आदि के भस्म होने का मुख्य स्थान हृदय है क्योंकि जिस स्थान पर कोई वस्तु भस्म हो वह स्थान शमशान कहलाता है अतः काम क्रोध राग आदि से रहित शमशान रूपी हृदय में ही भगवती काली निवास करती है भक्त जनों को चाहिए कि वे अपने हृदय में भगवती काली को स्थापित करने हेतु उसे श्मशान बना ले अर्थात संसार एक राग द्वेष आदि से पूर्णत रहित कर ले।
चिता- श्मशान में चिता के प्रज्वलित होने का तात्पर्य है राग द्वेष आदि विकार रहित हृदय रूपी श्मशान में ज्ञान अग्नि का निरंतर प्रज्वलित बने रहना शिवा कंकाल अस्थि शवमुंण्ड श्मशान में शिवा(गीदडी- सियारिन) कंकाल अस्थि तथा शवमुण्ड की उपस्थिति का तात्पर्य है शिवा, शव, मुण्ड आदि अपञ्चीकृत महाभूत है sअस्थि कंकाल आदि उज्जवल वर्ण सत्व गुण के बोधक हैं अर्थात हृदय रूपी श्मशान में अपञ्चीकृत महाभूत शिवा शवमुंण्ड आदि के रूप में तथा अस्थि कंकाल आदि सत्व गुण के रूप में उपस्थित रहते हैं।
आसन- शिव से जब शक्ति पृथक हो जाती है तब वह शव मात्र रह जाता है अर्थात जिस प्रकार शिव का अंश स्वरूप जीव शरीर प्राण रूपी शक्ति के हट जाने पर मृत्यु को प्राप्त होकर शव हो जाता हैt उसी प्रकार उपासक जब अपनी प्राण शक्ति को चित्र शक्ति में समाहित कर देता है तब उसका पंच भौतिक शरीर शव की भांति निर्जीव हो जाता है उस स्थिति में एक भगवती आद्यशक्ति उसके ऊपर अपना आसन बनाती है अर्थात उस पर अपनी कृपा बरसाती है और उस स्वमं में सन्निहित कर भौतिक प्रपंचों से मुक्त कर देती है यही भगवती का शव आसन है और इसीलिए शव को भगवती का आसन कल्पित किया गया है।
शशि शेखर- भगवती के ललाट पर चंद्रमा की स्थिति बताकर उन्हें शशि शेखरा कहा गया है इसका भावार्थ यह है कि वे चिदानंदमयी है hतथा अमृतत्व रूपी चंद्रमा को धारण किए हुए हैं अर्थात उनकी शरण में पहुंचने वाले साधक को अमृतत्व की उपलब्धि होती है।
मुक्तकेशी- भगवती की बाल बिखरे हैं इसका तात्पर्य है कि केश विन्यासआदि विकारों से रहित त्रिगुणातीता है
त्रिनेत्रा- भगवती के तीन नेत्र हैं कहने का आशय यह है कि चंद्र सूर्य तथा अग्नि यह तीनों भगवती के ही नेतृत्व रूप हैं दूसरे शब्दों में भगवती तीनों लोगों को देख पाने में सक्षम है
मातृयोनि- इसका अर्थ है मूलाधार स्थित त्रिकोण जयमाला के सुमेरु को भी मातृ योनि कहा जाता है लिंग का अर्थ है जीवात्मा भगिनी का अर्थ है कुंडल नीको जीव आत्मा की भगिनी कहा जाता है योनि योनि का अर्थ है सुमेरु के अतिरिक्त माला के अन्य दानों को योनि कहा जाता है मधपान इसका आशय है कुंण्डलिनी को जगा कर ऊपर उठाएं तथा स्वस्थ चक्र का भेदन करते हुए सहस्त्रार में ले जाकर शिव शक्ति की समरसता के आनंद अमृत का बारंबार पान करना है aकुंण्डलिनी को मूलाधार चक्र अर्थात पृथ्वी तत्व से उठाकर सहस्त्रार में ले जाने से जीत आनंद रूपी अमृत की उपलब्धि होती है वही मधपान है और ऐसे अमृत रूपी मध का पान करने से पुनर्जन्म नहीं होता है।
भगवती के विषय में यह एक सागर में बूंद के समान है इनकी महिमा अपरंपार है।