- द्रौपदी कौन थी, द्रौपदी का जन्म –
द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की कन्या थी. द्रौपदी एक दिव्य कन्या थी, जिसका जन्म अग्निकुंड से हुआ था. द्रौपदी एक युवा कन्या के रूप में अग्निवेदी से प्रकट हुई थी. राजा द्रुपद ने द्रौपदी को कुरु वंश के नाश के लिए उत्पन्न करवाया था. राजा द्रुपद द्रोणाचार्य को आश्रय देने वाले कुरु वंश से बदला लेना चाहते थे.
जब पांडव और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी तो द्रोणाचार्य ने उनसे एक गुरुदक्षिणा मांगी. द्रोणाचार्य ने वर्षो पूर्व द्रुपद से हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवो और कौरवों से कहा कि पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे समक्ष लाओ. पहले कौरवों ने आक्रमण किया परन्तु वो हराने लगे
यह देख पांडवो ने आक्रमण किया और द्रुपद को बंदी बना लिया. द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य ले लिया और आधा उन्हें वापस करके छोड़ दिया. द्रुपद ने इस अपमान और राज्य के विभाजन का बदला लेने के लिए ही वह अद्भुत यज्ञ करवाया, जिससे द्रौपदी और धृष्टद्युम्न पैदा हुए थे.
- द्रौपदी के कौमार्य का रहस्य –
अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥
इस श्लोक का अर्थ है: अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है.
द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है. पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था. पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं. द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?
ये सभी को पता है कि द्रौपदी के 5 पति थे, लेकिन वो अधिकतम 14 पतियों की पत्नी भी बन सकती थी. द्रौपदी के 5 पति होना नियति ने काफी समयपूर्व ही निर्धारित कर दिया था. इसका कारण द्रौपदी के पूर्वजन्म में छिपा था, जिसे भगवान कृष्ण ने सबको बताया था.
पूर्वजन्म में द्रौपदी राजा नल और उनकी पत्नी दमयंती की पुत्री थीं. उस जन्म में द्रौपदी का नाम नलयनी था. नलयनी ने भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए कड़ी तपस्या की. भगवान शिव जब प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो नलयनी ने उनसे आशीर्वाद माँगा कि अगले जन्म में उसे 14 इच्छित गुणों वाला पति मिले.
यद्यपि भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे, परन्तु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है. किन्तु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया. इस अनूठे आशीर्वाद में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुनः कुंवारी होना भी शामिल था. इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गयीं.
नलयनी का पुनर्जन्म द्रौपदी के रूप में हुआ. द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचो पांडवों में थे. युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे. भीम 1000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे. अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थे. सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे, नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे.
- द्रौपदी के पुत्रों के नाम –
5 पांडवों से द्रौपदी के 5 पुत्र हुए थे.
युधिष्ठिर के पुत्र प्रतिविन्ध्य
भीम से सुतसोम
अर्जुन से श्रुतकर्म
नकुल से शतनिक
सहदेव से श्रुतसेन नामक पुत्र हुए.
ये सभी पुत्र सोते समय अश्वत्थामा के हाथों मारे गए. द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न का वध भी अश्वत्थामा ने ही किया था.
- द्रौपदी से सबसे अधिक प्रेम कौन करता था –
पांचों पांडवों में द्रौपदी सबसे अधिक प्रेम अर्जुन से करती थीं. अर्जुन ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीत कर लाये थे, परन्तु द्रौपदी से पांडवों में सर्वाधिक प्रेम करने वाले महाबली भीम थे.
अर्जुन जोकि द्रौपदी को जीत कर लाये थे, इस बात से बहुत प्रसन्न नहीं थे कि द्रौपदी पांचो भाइयों को मिले. अपनी अन्य पत्नी सुभद्रा पर एकाधिकार से अर्जुन को शांति मिलती थी.
इस बात से द्रौपदी को कष्ट होता था कि अर्जुन अपनी अन्य पत्नियों सुभद्रा, उलूपी, चित्रांगदा से प्रेमव्यवहार में व्यस्त रहते थे. युधिष्ठिर और द्रौपदी का सम्बन्ध धर्म से था. नकुल सहदेव सबसे छोटे थे, अतः उन्हें बाकी भाइयों का अनुसरण करना होता था.
इन सबके बीच भीम ऐसे व्यक्ति थे, जोकि द्रौपदी से बहुत प्रेम करते थे, जिसे उन्होंने कई प्रकार से प्रदर्शित भी किया.
भीम ने कुबेर के अद्भुत उद्यान से द्रौपदी के लिए दिव्य सुगंध वाले पुष्प लाये.
भीम ने मत्स्य वंश के राजा कीचक का वध किया क्योंकि उसने द्रौपदी के साथ दुर्व्यवहार किया था.
वनवास के दौरान घने जंगल में भीम द्रौपदी को अपने भुजाओं में उठाकर चलते थे, जिससे उसे चलने में कष्ट न हो.
भीम ने ही द्रौपदी चीर हरण के बाद 100 कौरवों का अंत करने का वचन लिया.
अज्ञातवास के दौरान जब द्रौपदी को रानी सुदेशना की दासी बनना पड़ा तो भीम को अपार कष्ट हुआ.
महाभारत युद्ध के 14वें दिन भीम ने ही द्रौपदी वस्त्रहरण करने वाले दुःशासन का वध कर उसके सीने का रक्त द्रौपदी को केश धोने के लिए दिया. इससे ही 15 साल बाद द्रौपदी ने पुनः अपने केश बांधे.