जो व्यक्ति जीते जी अपने माता पिता और घर के बुजुर्गों काअपमान करते हैं उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं और जब ये बुजुर्ग लोग शरीर छोड़ते हैं तो दुख के कारण उनके मन से उनकी आत्मा को कष्ट पहुंचता है। यही पितृदोष का कारण बनता है। आज के समय में कुछ लोग इसे अंधविश्वास तक बता देते हैं। लेकिन पित्रों के असंतुष्ट होने के कारण ही उनकी संतानों की कुंडली में पित्र दोष बनता है।
जन्म कुंडली के त्रिकोण भावों में से किसी एक भाव पर पितृ कारक ग्रह सूर्य की राहु अथवा शनि के साथ युति हो तो जातक को पितृ दोष होता है।
राहु और शनि कुंडली के किसी भाव में विराजमान हो तो पितृ दोष होता है।
लग्न तथा चन्द्र कुंडली में नवां भाव या नवमेश अगर राहु या केतु से ग्रसित हो तो।
जन्म कुंडली में लग्नेश यदि त्रिक भाव (6,8 या 12) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है।
अष्टमेश का लग्नेश, पंचमेश अथवा नवमेश के साथ स्थान परिवर्तन योग भी पितृ दोष का निर्माण करता है।
दशम भाव को भी पिता का घर माना गया है अतः दशमेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है।
यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है।
अगर कुंडली में पितृ कारक ग्रह सूर्य अथवा रक्त कारक ग्रह मंगल इन दोनों में से कोई भी नवम भाव में नीच का होकर बैठा हो और उस पर राहु/केतु की दृष्टि हो तो पितृ दोष का निर्माण हो जाता है।
यदि कुंडली में अष्टमेश राहु के नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश के नक्षत्र में हो तथा लग्नेश निर्बल एवं पीड़ित हो।
इसके अलावा और भी कई योग ऐसे हैं जिससे पितृ दोष का निर्माण होता है।
पितृ दोष का कारण-
पितृदोष, अर्थात हमारे अथवा हमारे पितरों या पूर्वजों द्वारा किए गए कुछ ऐसे कर्म जो हमारे लिए श्राप बन जाते हैं। पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्माननीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। गौ हत्या और भ्रूण हत्या से भी पितृदोष लगता है।नारायणबली नागबली और त्रिपिंडी पूजा-
त्रियम्ब्केश्वर नासिक में जाकर करवाये। यह पूजा अपने आप में सम्पूर्ण पित्रदोषो और कालसर्प दोषो मुक्ति प्रदान करने के लिए करवाई जाती है। इसके लिए आपको ३ दिन का समय निकाल कर नासिक जाना पड़ेगा। यह पूजा इन दोषो की मुक्ति के लिए अचूक उपाय है।
पितृ दोष दूर करने के लिए सोमवती अमावस्या का अद्भुत प्रयोग-
सोमवती अमावस्या पितृदोष दूर करने के लिये अतिउत्तम है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड के पास जाइये, उस ही पीपल देवता को एक जनेऊ दीजिये साथ ही दुसरा जनेऊ भगवान विष्णु जी के नाम से उसी पीपल के पेड को दीजिये, पीपल के पेड और भगवान विष्णु को नमस्कार कर प्रार्थना कीजिये, अब एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की कारे दुध की बनी मिठाई को हर परिक्रमा के साथ पीपल को अर्पित करते जाईए। परिक्रमा करते समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र को जपते रहे। 108 परिक्रमा पूरी करने के बाद पीपल के पेड और भगवान विष्णु से फिर प्रार्थना करे कि जाने अन्जाने में हुये अपराधो के लिए उनसे क्षमा मांगिये। और अपने पितरो के कल्याण के लिए प्रार्थना करें।
पितृ दोष का निवारण के अन्य सरल उपाय-
पितृदोष के निवारण के लिए श्राद्ध काल में पितृ सुक्त का पाठ संध्या समय में तेल का दीपक जलाकर करे। पितृश्राप/पितृदोष से मुक्ति के लिए अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिए।नियमित श्राद्ध विधि के अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में कौओं, कुत्तों व जमादारों को खाना देना चाहिए। भागवत कथा का आयोजन करें और श्रवण करें।
अगर सूर्य त्रिक भाव का भी स्वामी है अथवा अकारक ग्रह है तो लाल कपडा, लाल मसूर, गेंहू, तांबा, लाल फल का रविवार को दान करें। पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें। अमावस्या, पुण्य तिथि, अथवा श्राद तिथि को रुद्राभिषेक करें/कराएं। प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा-वस्त्र भेंट करने से पितृदोष कम होता है।
विष्णु सहस्त्रनाम का नियमित पाठ भी पितृ दोष शान्ति का अद्भुत उपाय है। यह पाठ कम से कम ४३ दिन करना चाहिए। हालाँकि यह पाठ लम्बा होता है अगर आप यह न कर पाये तो नीचे लिखे गए उपायों को भी करके लाभ उठा सकते है।
हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्चे दूध में गंगाजल, थोड़े काले तिल,चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का पाठ करे।
अगर पितृ दोष सूर्य की राहु अथवा शनि के युति के कारण बन रहा है तो शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार दिन, घर में विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई भी लाल पुष्प, चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें। कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय
मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
पितृ दोष और वास्तु-
पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा प्रतिदिन उनके सम्मुख घी का दीपक जलाना चाहिए।
जिस घर में पीने के पानी का स्थान दक्षिण दिशा में हो उस घर को पितृदोष अधिक प्रभावित नहीं करता साथ ही यदि नियमित रूप से उस स्थान पर घी का दीपक लगाया जाए तो पितृदोष आशीर्वाद में बदल जाता है।
पारद के शिवलिंग में बहुत गुण होते है इसलिये इसकी स्थापना कर प्रतिदिन उनकी पूजा करें तथा अभिषेक करें ।
पितरों के समान हैं ये वृक्ष, पक्षी, पशु और जलचर
वृक्ष:-
1.पीपल का वृक्ष : पीपल का वृक्ष बहुत पवित्र है। एक ओर इसमें जहां विष्णु का निवास है वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना विशेष शुभ होता है।
2:बेल का वृक्ष : यदि पितृ पक्ष में शिवजी को अत्यंत प्रिय बेल का वृक्ष लगाया जाय तो अतृप्त आत्मा को शान्ति मिलती है। अमावस्या के दिन शिव जी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है।…इसके अलावा , तुलसी, के वृक्ष की भी पूजा करना चाहिए।
तीन पक्षी:-
1.कौआ : कौए को पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
2.हंस : पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने धर्म -नियम का पालन किया है। कुछ समय तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हो सकता है कि हमारे पितरों ने भी पुण्य कर्म किए हों।
3.गरुड़ : भगवान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गरुढ़ पुराण है जिसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग नरक, पितृलोक आदि का उल्लेख मिलता है। पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ का आश्रय लेते हैं ।
पशु:-
1.कुत्ता : कुत्ते को यम का दूत माना जाता है। दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।
2.गाय : जिस तरह गया में सभी देवी और देवताओं का निवास है उसी तरह गाय में सभी देवी और देवताओं का निवास बताया गया है। दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
जलचर जंतु:-
1.मछली : भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाती के अस्त्वि को जल प्रलय से बचाया था। जब श्राद्ध पक्ष में चावल के लड्डू बनाए जाते हैं तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है
2:नाग : भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।